Naga Sadhvi भी होती हैं ये पता चला दुनिया को इस बार के महाकुंभ 2025 में ..जानिये संक्षिप्त परिचय नागा साध्वियों के रहस्यमय संसार का..
भस्म से लिपटे, कठोर तपस्या में लीन नागा साधुओं के बारे में तो सभी जानते हैं, लेकिन उनका जीवन रहस्यों से भरा हुआ है। जब भी नागा साधुओं की बात होती है, तो एक प्रश्न मन में आता है – क्या महिलाएं भी नागा साधु बन सकती हैं?
उत्तर है -हाँ, पुरुष नागा साधुओं की तरह महिलाएं भी नागा साधु बनती हैं, लेकिन उनके लिए यह प्रक्रिया कहीं अधिक कठिन होती है। महिला नागा साध्वियों का जीवन रहस्यमयी और कठिन तपस्या से भरा होता है। नागा साधु बनने से पहले महिलाओं को अत्यंत कठोर परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है।
महिला नागा साधु बनने की प्रक्रिया
महिला नागा साधु बनने के लिए कई शारीरिक और मानसिक बदलावों से गुजरना पड़ता है। उन्हें सिर मुंडवाना होता है और अपने गुरु को यह विश्वास दिलाना पड़ता है कि वे संसार के मोह से पूर्णतः मुक्त हो चुकी हैं। नागाओं की दुनिया में किसी प्रकार के मोह या माया का स्थान नहीं होता। वर्षों की कठिन परीक्षा और तपस्या के बाद ही कुछ महिलाएं नागा साधु बनने का सौभाग्य प्राप्त कर पाती हैं।
नागा साध्वियों का रहस्यमयी संसार
मोक्ष की साधना में लीन ये महिला नागा साध्वियां भौतिक सुखों का परित्याग कर देती हैं। वे शिव की आराधना में लीन रहती हैं, त्रिशूल और डमरू धारण करती हैं, और अपने तन पर भस्म का लेप करती हैं। नागा साध्वियों की यह रहस्यमयी दुनिया संयम, साधना और तपस्या का प्रतीक होती है। गृहस्थ जीवन का परित्याग कर वे एक अलग ही संसार में प्रवेश कर जाती हैं, जहाँ केवल शिव ही उनके जीवन का केंद्र होते हैं।
कठोर नियम और परंपराएँ
महिलाओं के लिए नागा साधु बनने का मार्ग अत्यंत कठिन होता है। उन्हें 10 से 15 वर्षों तक कठोर ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना पड़ता है। इस दौरान उन्हें गुरु की कड़ी परीक्षा से गुजरना होता है, जिससे उनके धैर्य और समर्पण की परीक्षा ली जाती है। महिला नागा साध्वियों को पहले अखाड़े की अनुमति लेनी होती है, जिसके बाद उनका संन्यासी जीवन आरंभ होता है। इसके अलावा, उन्हें 108 बार गंगा में डुबकी लगाने जैसी कठिन साधनाएँ करनी पड़ती हैं।
सामाजिक जीवन का अंत
महिला नागा साधुओं को सांसारिक जीवन से पूरी तरह मुक्त होने के लिए अपना पिंडदान करना पड़ता है। यह एक प्रतीकात्मक प्रक्रिया होती है, जिसके माध्यम से वे अपने पूर्व जीवन से संबंध समाप्त कर लेती हैं। यह निर्णय लेना उनके लिए अत्यंत कठिन होता है, लेकिन यह आध्यात्मिक यात्रा का एक महत्वपूर्ण पड़ाव होता है।
दीक्षा प्रक्रिया
महिला नागा साधु बनने की पूरी प्रक्रिया आचार्य महामंडलेश्वर द्वारा संपन्न कराई जाती है। अखाड़े के नियमों का पालन करते हुए, उन्हें धार्मिक दीक्षा दी जाती है। दीक्षा के दौरान, वे अपने पूर्व वस्त्र त्यागकर गेरुआ वस्त्र धारण करती हैं और आध्यात्मिक जीवन में प्रवेश करती हैं। इसके बाद वे प्रतिदिन दो बार नदी में स्नान करती हैं और भगवान शिव का जाप करती हैं।
नागा साध्वियों का शाही स्नान
महाकुंभ के दौरान महिला नागा साध्वियों का शाही स्नान अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस अवसर पर वे प्रमुख अखाड़ों के झंडे और हथियारों के साथ भव्य शोभायात्रा निकालती हैं। शाही स्नान केवल धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं, बल्कि यह उनके आध्यात्मिक समर्पण और शक्ति का भी प्रतीक होता है।
आध्यात्मिक अनुशासनमहिला नागा साधु बनने के लिए उन्हें कम से कम 6 से 12 वर्षों तक कठोर ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है। इस अवधि में वे सांसारिक मोह-माया को त्यागने की परीक्षा में स्वयं को सिद्ध करती हैं। उनकी वेशभूषा भी विशेष होती है – वे भस्म का लेप करती हैं, गेरुआ वस्त्र पहनती हैं, और रुद्राक्ष धारण करती हैं। यह उनकी आध्यात्मिक साधना का प्रतीक होता है।
गुप्त भाषा और परंपराएँ
महिला नागा साधु एक विशेष प्रकार की सांकेतिक भाषा में बातचीत करती हैं, जो संस्कृत और पुरानी हिंदी का मिश्रण होती है। वे गुप्त रूप से संवाद करती हैं, जिससे उनकी परंपराएँ और रहस्य सुरक्षित रहें। यह परंपरा मुगल और ब्रिटिश शासन के दौरान विकसित हुई थी, जब उन्हें अपने विचारों को छिपाने की आवश्यकता पड़ी थी।
नागा साध्वियों का समाज में स्थान
महिला नागा साधु पुरुष नागाओं की तरह ही आध्यात्मिक साधना में लीन रहती हैं और धार्मिक आयोजनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। वे इस तथ्य का प्रमाण हैं कि आध्यात्मिक मुक्ति केवल पुरुषों तक सीमित नहीं है। महिला नागा साधु कठोर तप और त्याग का उदाहरण प्रस्तुत करती हैं और यह दर्शाती हैं कि आध्यात्मिक शक्ति और समर्पण किसी भी लिंग तक सीमित नहीं हैं।
निष्कर्ष
महिला नागा साधु बनना एक अत्यंत कठिन और अनुशासनबद्ध प्रक्रिया है। यह केवल एक साधारण धार्मिक यात्रा नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक यात्रा है, जिसमें उन्हें अपने अस्तित्व से ऊपर उठकर केवल ईश्वर को समर्पित होना पड़ता है। महिला नागा साध्वियाँ न केवल अपने कठोर तप से आध्यात्मिक मार्ग प्रशस्त करती हैं, बल्कि वे स्त्री सशक्तिकरण का भी प्रतीक बन जाती हैं। उनके समर्पण, तपस्या और साधना की यह यात्रा उनके अनूठे अस्तित्व को पारिभाषित करती है।
(अर्चना शेरी)