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Wednesday, June 11, 2025

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Poetry by Preeti Saxena: अस्तित्व प्यार का..

(Poetry)
प्यार!
किसी पत्ते पर गिरा
शबनम का कतरा तो नहीं है
जो सहलाया सूरज की पहली किरण ने
और मौन सूख गया हो
प्यार!
मिट्ठी का भुरभुरा ढेला तो नहीं है
की चंद सांसों की फूंक से उड़ाया
और झट से उड़ गया वह
प्यार
क्या है फिर?
अरे, प्यार महज शब्द तो नहीं है
की शब्दकोष उठाया तुमने पूछा और
मैंने बताया।और किसी कागज़ या स्क्रीन
पर जाकर चिपक गया वह
प्यार!
प्यार तो कोई पेड़ है शायद
जिसकी जड़ें गहरी हैं
बीज का अता- पता नहीं है
धीमे-धीमे बढ़ता फलता-फूलता
सृस्टि के कण-कण को जोड़ता
हमारे भीतर नदियों के वेग सा
समाया हुआ है
परंतु आज कहानियों तक ही
सीमित रह गया है।।
(प्रीति सक्सेना)

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