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Saturday, June 14, 2025

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Poetry by Amandeep Gujral: एक बौराई हुई कोयल गा रही है गीत

(POETRY)
एक बौराई हुई कोयल गा रही है गीत
इस उम्मीद पर
कि भर जाएगी मिठास आमों में
मोर नाच रहा है बेसुध सा
कि उसे नाचता देख बरसेंगे बादल
ठीक उसी उम्मीद से चिड़िया बुन रही है घोंसला
कि कोई तूफान न हिला पाएगा उसे
एक लड़की रख रही है व्रत
सुंदर, सुनहरे भविष्य की आस में
एक पत्नी बुन रही है उम्मीदें
वफ़ा ,रिश्तों और सम्मान के
एक प्रेयसी देख रही है सपने
घर और बगिया के
ठीक उसी तरह, जब मैं लिख रही हूँ कविता
तुम्हारे लिए
तितली के चूमने से फूलों में भर रहे हैं रंग !
(अमनदीप गुजराल)

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