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Saturday, June 14, 2025

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Poetry by Shilpi Aggrawal: सिलसिला चला है रातों में मुस्कुराने का

(POETRY)
सिलसिला चला है
रातों में मुस्कुराने का
दिनभर की बातों को
सोचकर खिलखिलाने का !
ना मोहब्बत की बातें हैं
ना कोई तस्वीर कामयाबी की
ये सिलसिला है
खुद को खुद से मिलाने का !
कौन कहता है
कि तन्हाई रास आती नहीं
मुझे तो इंतज़ार होता है
तन्हाई के पास आने का !
जब रातों को चिराग़ बुझ जाते हैं
और उजाला कहीं दूर नज़र आता है
मुझे ज़रूरत नहीं चेहरे पर लिबास की
वक़्त होता है आपपे ही मर जाने का !
(शिल्पी अग्रवाल)

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