Poetry by Agyaat Veera: तेरे माथे से अभी लाज का कुंकुम न घुला..
(Poetry)
तेरे माथे से अभी लाज का कुंकुम न घुला
तेरी शोखी ने अभी आँख नहीं खोली है !
हाँथ की मेहंदी लाल है होंठों की तरह
तू किसी गाँव की लड़की सी अभी भोली है !!
(अज्ञात वीरा)
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