Poetry: अपराजिता की कलम कुछ कहती है दिल से..
आज फिर दिल में हलचल हुई
दिल फिर कुछ चाहने लगा।
छू लूं ऐसी ऊँचाइयाँ,
जहाँ खुद को हमेशा सपनों में देखा।
ढूँढ… सर्द हवाएँ,
और बस जो मैं चाहूँ…
सब बदल जाए…
जो फैसले लेने हैं…
समझ पाऊँ।
कितनी ज़रूरत है तेरी हर मुक़ाम पर,
पर तुझे कह न पाऊँ।
कहाँ जाऊँ,
कि खुद में खो के
ख़ुदा की हो जाऊँ…
फिर सारे फैसले उस पर छोड़ दूँ
जो करे वो… और मैं बस मुस्कराऊँ..
(अपराजिता बेदी)