Story By Anju-The TITAN
विविध भारती पर गीत बज रहा था….. “ये रातें,ये मौसम,नदी का किनारा ,ये चंचल हवा”,,,,,मै अनु काठमांडू (नेपाल) की रहने वाली एक बहुत साधारण लड़की जिसे छोटी-छोटी बातों में खुशी मिलती है,रंगीन तितलियों के पीछे भागना,कच्चे आमों को उचक-उचक कर चोरी-चोरी,चुपके-चुपके तोड़ना,खाट के नीचे छुपकर भईया के दोनों जूतों के तस्मों को बाँध देना,दादी की चुटिया खोल कर भाग जाना,,,,,,पुराने फिल्मी गाने रेडियो पर सुनना,कविताएँ लिखना. बस इन्हीं छोटी छोटी बातों में मैं खुश हो जाती थी.
बचपन से ही सपने देखा करती थी कि मैं एक बड़े से स्टेज शो में माईक हाथों में लिये गीत गा रही हूँ…..”पतझड़-सावन-बसंत-बहार,एक बरस के मौसम चार”….दर्शक….झूम रहे हैं मेरा गीत सुनकर .
तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा हॉल गूँज उठा…वन्स मोर,वन्स मोर की आवाजें आ रही है और मैं..मैं बहुत खुश हूँ..तभी मुझे याद आया कि माँ ने तो मुझे काकी के यहाँ जन्माष्टमी की मिठाई देकर आने को कहा था .ये मैं…मैं यहाँ कैसे आ गई और इसी ऊहापोह में मेरी नींद टूट गई .
आँखें खुली तो खुद को बिस्तर पर पाया.कहाँ गया वो स्टेज,वो तालियों की गूँज और मेरा गीत सुनकर झूमते लोग….कुछ भी नही था| पर उस स्वप्न को याद कर मेरे होंठों पर मुस्कुराहट खेल गई.
“एक दिन मेरा सपना अवश्य पूरा होगा.मैं एक जानी-मानी सिंगर बनूँगी .अपनी माँ का सपना ज़रूर पूरा करूँगी.”यही सपना बचपन से मुझे लगातार आता रहा है और अब भी मेरी नींदों से जुड़ा है.
जीवन के पचासवें दशक के अंतिम छोर को स्पर्श कर रही मेरी उम्र अब भी वो स्वप्न आँखों में संजोये हुए है कि शायद अब भी एक आशा की किरण मेरे हृदय के कोने से प्रस्फुटित हो रही है .
बचपन,यौवन और जीवन के इस मध्यावधि दौर में इच्छाओं का जलसिंधु अब भी लहरों की आवाजाही से हृदय की शुष्क दीवारों को अपने शीतल जल से भिगोता रहता है.
पूरे दिन भर में सदैव सकारात्मक सोच-विचार और बातें कहनी चाहिये.सरस्वती माँ विराजती हैं जिह्वा पर , जो हम कहते हैं ‘तथास्तु’ हो जाता है .ऐसा मेरी माँ कहा करती थी .इसलिये जब भी क्रोध आता तो स्वयं पर ये नियंत्रण अवश्य रखती हूँ कि कुछ गलत न निकल जाये मेरे मुँह से और तथास्तु हो जाये.
ये मेरे इस चारित्रिक विशेषता को दर्शाता है कि मैं ईश्वर को मानती हूँ और उनका भय भी है मेरे अंदर कि वो मुझे देख रहा है और कुछ ग़लत करने पर मुझे दंड भी देगा.शायद यही भाव मुझे कुछ भी ग़लत करने या सोचने से रोक लेता है.
हमारा कॉलेज के “93” बैच का व्हॉट्सअप ग्रुप है.इतने वर्षों के बिछड़े सब मित्रों को न जाने कैसे ढूँढ-ढूँढ कर निकाला और कुंभ के मेले में बिछड़े जैसे हम सारे दोस्त दोबारा मिल गये.जीवन के बीसवें वसंत के विछोह का मिलन पचासवें वसंत पर आ कर हुआ.
तय हुआ कि एक अच्छे पिकनिक स्पॉट का चयन किया जाये जहाँ झरने हों,सुंदर पहाड़ियाँ हो जिसका शीर्ष मेघो से आच्छादित हो,फूलों भरी वादियाँ,लहलहाते वृक्ष…बिल्कुल सपनों जैसा.
ऐसी तो बस एक ही जगह है ‘नगरकोट’ काठमांडू की सबसे खूबसूरत जगह .
सभी की तरह मैं भी बहुत उत्साहित थी कि आज बरसों बाद अपने मित्रों से जो मिलने वाली थी.पति ने भी खुशी-खुशी इजाज़त दे दी .
वॉर्डरोब खोला सोच रही थी कि क्या पहनूँ? हा हा हा…ये हर औरत की समस्या है . इतना कुछ होने पर भी कम पड़ जाता है .
पहले सोचा जींस-टॉप पहन लूँ कम्फरटेबल रहूँगी . निकालने ही लगी थी कि अचानक मेरी नज़र उस पिंक साड़ी पर चली गई जो मैंने कॉलेज फेयरवेल पर पहनी थी.
ये मेरी फेवरेट साड़ी है और उसकी भी .तब से अब तक है मेरे पास …कुछ खास मौकों पर ही पहनती हूँ .एवरग्रीन कलर और ट्रेंडी होने के कारण कभी फैशन पुराना नही हुआ .बस समय और बदलते स्टाईल के अनुसार ब़्लाऊज का कट और डिज़ाईन बदल गया .
अब मैं उम्र की संजीदगी को देखते हुए ज़्यादा हाईनेक ही प्रेफर करती हूँ जो रॉयल और क्लासी लुक भी देता है .मेरे ड्रेसिंग सेंस लुक और कहने के अंदाज़ पर कॉलेज के ज़माने में मुझे मेरे मित्र मुग़ले आज़म,मीना कुमारी ,शर्मिला टैगोर कह कर बुलाते थे .
तब मैं बहुत चिढ़ती थी पर अब समझती हूँ कि यदि आपकी तुलना ऐसे ‘लीजेंड’ से की जाये तो आपके लिये बहुत सम्मान की बात है.
खैर हमेशा की तरह बहुत कुछ सोचा परन्तु बस हल्की मर्जेंडा शेड लिपस्टिक,आँखों में काजल और खुले बाल .यही मेरा फाईनल मेकअप होता था .
एक हाथ में हीरे की रेगुलर सिंगल चूड़ी और दूसरे हाथ में ‘टाईटन वॉच’ जो पीयूष ने गिफ्ट की थी मुझे.गाड़ी का हार्न बजा, मैंने पलटकर देखा फिर मुड़ी.खुद को आईने में एकबार निहारा सैंडल पहनते हुए और गुची का पोर्टेबल पर्स ,मोबाईल उठाकर भागते हुए बंगले के बाहर पहुँची .
फिर अचानक ठिठक कर रूक गई कि अब मैं वो अल्हड़,चंचल अनु नही .एक आईपीएस ऑफिसर की पत्नी और दो बड़े बच्चों की माँ भी हूँ .
अपने कर्मचारियों के समक्ष भी मुझे अपनी ग़रिमा बनाये रखनी होगी .
मैं थोड़ा शांत और सहज भाव दिखाते हुए अपने शाही अंदाज़ में कार के गेट के पास खड़ी रही.पारस हमारा ड्राईवर …दस वर्षों से हमारी कार चला रहा था .कोई 30-32 की उम्र होगी .मुझ उसके प्रति भी अपने बच्चों जैसा स्नेह भाव था. जब भी शाॉपिंग जाती अपने बच्चों के साथ उसके लिये भी कुछ न कुछ ले आती थी .
पारस ने कार का दरवाज़ा खोला और मैं कार में मुस्कुराते हुए बैठ गई .पारस कार ड्राईव कर रहा था .मैं खिड़की के बाहर का नज़ारा देखते हुए बीच-बीच में मुस्कुरा भी रही थी जिसे पारस भाँप गया.
उसने कहा– ” अम्मो ! आज आप बहुत प्रसन्न लग रही हैं, है ना.”
मैंने उसकी ओर देखते हुए कहा –” हाँ पारस आज मैं अपने कॉलेज के मित्रों से एक अरसे के बाद मिलने जा रही हूँ .”पारस हँसने लगा और मैं भी.
कब नगरकोट पहुँच गई पता ही न चला .
पारस से शाम को पिकअप करने को कहकर मैं जल्दी-जल्दी कार से उतरने को थी तभी मोबाईल की घंटी बजी, पतिदेव का फोन था .
“अरे अनु ठीक से पहुँच गई ना ?”
” हाँ प्रशांत….” “ओके….एन्जॉय स्वीटहर्ट, शाम को पारस आ जायेगा तुम्हें पिक करने|”
“ओके शोना…” बात करते-करते गाड़ी से उतरी .कार का दरवाज़ा बंद करके ज्यों ही मुड़ी लगा मेरा पल्लू किसी ने पकड़ लिया .
एक बार मेरे दिल की धड़कन बढ़ गई .नज़रे घुमाई तो देखा मेरा पल्लू कार के दरवाज़े में अटक गया है .
मैं छुड़ाने की कोशिश कर ही रही थी कि किसी मज़बूत हाथ ने बीच में आकर गेट खोलकर मेरा पल्लू निकाल दिया .
मैंने धन्यवाद के लिये नज़रें उठाई तो ….तो बस उसे देखती रह गई.बस इतना ही निकला होंठों से “पीयूष……”
वो मेरी ओर देख रहा था और मुस्कुरा रहा था .
मैंने भी स्वयं को सँभालते हुए कहा ” अरे तुम तो जर्मनी में थे ना? “
“हाँ अनु….पर अभी मुझे भारतीय संस्कृति पर आधारित एक एल्बम बनाने का काम मिला है.इसलिये भारत आया हूँ दो दिन पहले ही ताकि यहाँ के धर्म और संस्कृति को समझ सकूँ .
मुझे इस पर एक डॉक्यूमेंट्री बनानी है.एक ऐसे चेहरे और देसी आवाज़ की तलाश में भी हूँ जो मेरे इस डॉक्यूमेंट्री में बतौर नायिक काम करे और मेरे बनाये गीतों को अपनी सुंदर आवाज़ दे .”
“ओहहह….ये तो बहुत अच्छी बात है .”
तभी वरूण और स्मिता भी आ गये हँसते हुए . स्मिता ने कहा “तुझे नही बताया कि पीयूष भी आने वाला है, तुझे सरप्राईज़ देना चाहते थे..हा हा हा…”
मुझे हँसी बिल्कुल नही आई थी , बस मैं हौले-से मुस्कुरा दी.अब ये सरप्राईज़ था या शॉक….. खैर……
हम सभी सीढ़ियों से चढ़कर ऊपर पहुँचे .
ऊँचे-ऊँचे पेड़…..रंग-बिरंगे फूल, सिहरन पैदा करती ठंडी हवा और कल-कल बहते झरनों की सुरीली धुन मन को लुभा रही थी .
बाकि मित्र पहले से ही वहाँ मौजूद थे . शोर के साथ सबने हमारा स्वागत किया .प्रदिप्ती आ कर मेरे गले लग गई जैसे कॉलेज में लगा करती थी .
मैने उसे एक स्माईल दी . वो बोली “बिल्कुल नही बदली तू अनु…अब भी उतनी ही प्यारी और खूबसूरत है तू.”
पास खड़े पीयूष ने हाँ में हाँ मिलाई .कहा “बिल्कुल सच कह रही हो प्रदिप्ती” जिसे सुनकर मैं थोड़ा झेंप गई और स्माईल के साथ गालों पर गहरे डिम्पल पड़ गये .
“हाय! तेरा यही अंदाज़ तो दिल चुरा लेता है , क्यूँ पीयूष?” सुनकर पीयूष थोड़ा लाल हो गया,कुछ कहा नही और मैं भी चुप रही .
तभी प्रदिप्ती मुझे हाथ पकड़ कर ले गई बाकि दोस्तों से मिलाने .मेरी टाईटेन वॉच कब खुलकर वहाँ गिर गई मुझे पता ही नही लगा .पीयूष मुझे जाते हुए देख रहा था .
मैं बाकि मित्रों से बात करने में व्यस्त हो गई और वो भी. हाँ पीयूष ने घड़ी उठाकर अपनी जेब में रख ली.
लंच करने के बाद सब अंताक्षरी खेलने लगे . पीयूष दूसरी टीम में था और मैं दूसरी टीम में .
मैंने गीत गाया ” मेरा पढ़ने में नही लागे दिल क्यूँ,,,,मुझे वो तो नही हो गया|” वरूण ने कहा कि तुम अब भी उतना ही सुरीला गाती हो अनु जैसे कॉलेज के ज़माने में गाया करती थी …कोई बदलाव नही आया.मैं हँसने लगी .
तभी गिटार की आवाज़ वादियों में गूँज गई .मैंने मुड़कर देखा तो पीयूष गिटार बजा रहा था और उसने गाना शुरू किया “ये रातें,ये मौसम ,नदी का किनारा, ये चंचल हवा . कहा दो दिलों ने कि मिलकर कभी हम न होंगे जुदा .”
मैं…..मैं जैसे खो गई उसकी मधुर,मखमली आवाज़ में .सब शांत हो कर गीत सुनने लगे .वो मेरी तरफ ही देख रहा था .मैंने नज़रे झुका ली .पुरानी यादें मस्तिष्क में कौंधने लगी .
फेयरवेल का दिन था . हम सभी मित्र बिल्कुल फॉर्मल कपड़ों में कॉलेज पहुँचे .हम सभी सहेलियों ने साड़ी पहनी थी .मैंने बेबी पिंक कलर की साड़ी पहनी थी .
सूने हाथ, न बिंदी ,न लाली बस काजल जो मेरा फेवरेट ब्यूटी प्रोडक्ट हुआ करता था और बस चेहरे पर स्माईल . हमारे जूनियर्स ने हमारे लिये बहुत सुंदर गीत-नृत्य,ड्रामा,टाईटल और क्वीज़ का रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत किया .
विदाई-स्पीच से पहले हमारे जूनियर्स ने मुझे और पीयूष से एक गीत सुनाने की फरमाईश की . पीयूष और मैं अपने बैच के सबसे अच्छे सिंगर थे . वो मुझे शर्मिला टैगोर कह कर चिढ़ाता था .
मैं नही पड़ना चाहती थी उसके सामने क्यूँकि उसकी रहस्यमयी मुस्कान और दिलकश अंदाज़ मुझे उसकी ओर न जाने क्यूँ खींचता था पर तभी पीयूष आ गया मेरे करीब और साथ स्टेज पर चलने का आग्रह करने लगा . मैं मना नही कर पाई .
पीयूष ने गिटार बजाना शुरू किया और गाने लगा ” ये रातें,ये मौसम,नदी का किनारा ये चंचल हवा…” मैंने भी धड़कते दिल से गाना आरम्भ किया फीमेल पार्ट.सारा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा .
परफॉरमेंस बहुत अच्छी रही .पीयूष बार-बार मेरी तरफ देख कर मुस्कुरा रहा था .मैं उससे नज़रें नही मिला पा रही थी .
गीत के बाद हमारे प्रधानाध्यापक जी ने “फेयरवेल-स्पीच” दी .हम सब एक-दूसरे से मिलते-मिलाते विदा ले रहे थे कि अचानक तभी पीयूष मेरे पास आया.
मैंने देख कर अनदेखा करना चाहा पर तभी उसने रहा …” अनु……”
मैंने जान-बूझकर अनसुना किया पर उसने फिर संबोधित करते हुए कहा “अनु सुनो!……
मैंने मुड़कर जवाब दिया…”हाँ पीयूष……”
“बहुत प्यारी लग रही हो इस साड़ी में, पिंक कलर सूट करता है तुम पर” मेरे दोनों गालों का रंग साड़ी के रंग से मेल खाते हुए मर्ज हो गया था .
“थैंक्यू पीयूष,,,,,” धीरे-से कहा मैंने .
“आज कॉलेज का आखरी दिन है .इसके बाद हम कभी मिले या न मिले . तुम्हें एक उपहार देना चाहता हूँ …मना मत करना .”
मैं कुछ कह नही पाई .
“अपना बाँया हाथ आगे करो….”
“हाँ…..पर क्यूँ पीयूष”
” सवाल पे सवाल नही करते..करो हाथ आगे”
“लो…”
पीयूष ने जेब से घड़ी निकाली और मेरी कलाई पर बाँधने लगा .
वो घड़ी बाँधते हुए कहे जा रहा था…” तुम्हारे साथ पढ़ते-लिखते मुझे कब तुमसे प्रेम हो गया पता नही अनु. आज भी नही कहता यदि ये फेयरवेल समारोह नही होता.
अपने परिवार का इकलौता लड़का हूँ और अपने माता-पिता की पहली और आखरी आस भी.मुझे उनके सपने पूरे करने हैं .
कुछ ही दिनों में जर्मनी जा रहा हूँ अपना करियर बनाने.पिताजी ने माँ के गहने बेच कर बंदोबस्त किया है पैसों का . तुम्हें मेरी प्रतीक्षा करने भी नही कह सकता .क्या पता कितना वक्त लग जाये मुझे.
ये सब इसलिये भी कह दिया क्यूँकि मुझे पता है कि तुम भी मन ही मन मुझसे प्रेम करती हो पर तुम्हें मैं रूकने को नही कहूँगा क्यूँकि मेरा हाल-फिलहाल कोई ठौर-ठिकाना नही .
“वो कहते जा रहा था और मैं मौन-मूक सी सब सुनती जा रही थी.
उसने आगे कहा कि ” ये टाईटन घड़ी मैंने अपने पॉकेट मनी और ट्यूशन से कमाये पैसों से तुम्हारे लिये खरीदी है.बस चाहता हूँ कि तुम इसे हमेशा अपनी कलाई पर बाँधो तो मुझे लगेगा मैं तुम्हारे साथ हूँ हर पल ….बाँधोगी ना अनु?”
मैंने बस सर हिला दिया कुछ कह नही पाई .फिर उसने मेरे गालों को अपनी ऊँगलियों से स्पर्श किया और बोला ‘मेरी शर्मिला’ और बस पलटकर गेट की तरफ मुड़ गया.
मैं स्तब्ध खड़ी उसे जाते हुए देखती रही. रूकने के लिये नही कह पाई क्यूँकि उसने कोई वादा नही किया था वापस लौटने का, किस अधिकार से रोकती? वो चला गया.
बहुत दिनों तक मन भारी और बोझिल रहा पर मैंने अपनी आगे की पढ़ाई जारी रखी और एमकॉम कम्प्लीट किया. अब वो घड़ी हर वक्त मेरी कलाई पर बंधी रहती जो पीयूष प्रेम की डोर की तरह बाँध गया था .
वक्त बीतता गया…. दीपावली का त्यौहार आने वाला था.मैं अपनी सहेलियों के साथ एक्ज़िविशन में गई थी.वहाँ बहुत भीड़-भाड़ थी .अचानक मेरे हाथ से पीयूष की घड़ी खुलकर गिर गई.जब मुझे ध्यान आया तो मैं बेचैन होकर ढूँढने लगी|.मुझे ढूँढता देख आस-पास के लोग भी ढूँढने लगे.
तभी एक बाँका ,सजीला ,रौबदार युवक मेरे सामने आ खड़ा हुआ हाथ में पीयूष वाली घड़ी लिये.
“लीजिये मैडम आपकी घड़ी.”
मैंने झट से घड़ी ले ली और उन महोदय को धन्यवाद दिया. उन्होंने कहा “आपकी घड़ी ढूँढ कर दी.कुछ इनाम नही मिलेगा?”
मैं सोच में पड़ गई.मुझे परेशान देखकर वो हँसने लगे कहा “अरे परेशान न हो ,एक कप कॉफी साथ पीते हैं.बस यही इनाम काफी होगा|.”
मैं मुस्कुराने लगी.कॉफी पीते-पीते कुछ बातें हुई.मुझे वो बहुत सज्जन लगे .उन्होंने अपना नाम प्रशांत बताया| ये भी बताया कि वे आईपीएस की तैयारी कर रहे हैं. मैं उनके व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हुई. एक-दूसरे का नम्बर ले लिया ,हम दोस्त जो बन गये थे.मैं सहेलियों के साथ वापस घर लौट आई.
इस बीच हमारी बातें फोन पर होती रही. इधर मैंने एम कॉम पूरा किया और उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की . वे आईपीएस आफिसर बन गये तब तक उनके और मेरे माता-पिता भी आपस में काफी घुल-मिल चुके थे. हमदोनों भी एक दूसरे को पसंद करने लगे थे और बात विवाह तक पहुँच गई.
मैंने प्रशांत के साथ अग्नि के सात फेरे लिए और उस पवित्र बंधन में बँध गई.पीयूष अब बस उस घड़ी की यादों में था जिसे मैं विवाहोपरांत भी अपनी कलाई पर सजाती रही.
मेरे पति भी ये जानते थे कि ये मेरी प्रिय घड़ी है जो मेरे प्रिय मित्र पीयूष ने मुझे भेंट स्वरूप दी थी.उन्होंने भी मुझे इसे पहनते रहने से कभी नही टोका.
वक्त पंख लगा कर कब उड़ ग़या पता ही नही लगा.
खैर पी़यूष का गीत पूरा हो चुका था और मैं भी बीती यादों से बाहर निकल आई. बहुत अच्छा वक्त व्यतीत किया सब मित्रों के साथ. सब अपने-अपने घर को निकल रहे थे.
मैं,पीयूष,वरूण और स्मिता मेरी कार में एकसाथ थे. रास्ते भर बातें होती रही . बातों बातों में पीयूष ने अपनी डॉक्यूमेंट्री के लिये मुझे अपनी आवाज़ देने और अभिनय करने के लिये प्रस्ताव रखा. वरूण और स्मिता ने भी उसका समर्थन किया.
मैंने पति की राय जानकर उत्तर देने का वादा किया . कार से उतरते वक्त पी़यूष ने घड़ी मुझे लौटा दी. मैं उसकी ओर देखती रह गई. रात भर पीयूष का वो गीत मेरे कानों में गूँजता रहा.
प्रशांत ने पूछा कि पिकनिक कैसी रही ,मैंने उन्हें सब बताया और पी़यूष के डॉक्यूमेंट्री एल्बम वाली बात भी.
मेरे पति और दोनों बच्चे बहुत खुश हुए और कहा कि मुझे जरूर करना चाहिये.
पति ने कहा कि “पीयूष को कल ब्रेकफॉस्ट पर बुला लो. कल संडे है बैठकर उनसे गपशप भी हो जायेगी.एल
मैंने हाँ में सर हिला दिया. पीयूष को तड़के ही फोन कर घर पर आमंत्रित किया . उसने खुशी-खुशी स्वीकार किया और ठीक दस बजे वो मेरे घर पहुँचा.
प्रशांत ने उसका हृदय से स्वाागत किया|.
डाईनिंग टेबल पर हँसी-मज़ाक और बहुत सारी बातें हुई.पीयूष के दिलकश अंदाज़ और गीतों ने मेरे दोनों बच्चों का मन मोह लिया.
प्रशांत ने कहा “अरे अनु पीयूष को अपने हाथों की स्पेशल कॉफी तो पिलाओ.”
जी.. ये कह कर मैं और मेरी बेटी रोमा किचन में चले गये कॉफी बनाने. बेटा राहुल पीयूष के लाये गिफ्ट्स खोलकर देखने में व्यस्त हो गया.
प्रशांत और पीयूष आपस में बातें कर रहे थे. उसने अपने एल्बम के लिये मुझसे गीत गवाने और अभिनय के लिये प्रशांत से अनुमति माँगी. प्रशांत एक पल के लिये गंभीर हो गये.
फिर उन्होंने पीयूष से कहा कि “मेरी पत्नी बनने से पहले अनु आपकी मित्र है और मैं आपका दिल से आभार व्यक्त करना चाहता हूँ कि आपकी वजह से मुझे अनु मिली.”
मेरी वजह से. ? पीयूष ने हैरान हो कर प्रशांत से पूछा. “हाँ बिल्कुल..” फिर प्रशांत ने मेरी और अपनी पहली मुलाकात के बारे में सब कुछ पीयूष को बताया.
“मैं बहुत यौभाग्यशासी हूँ कि मुझे अनु जैसी प्यारी और समझदार पत्नी मिली. एक बात और कहूँगा यदि आपके स्थान पर मैं होता अनु का मित्र तो भी आज वो मेरी ही पत्नी होती. आप को कैसे अनु से प्यार नही हुआ,जो अपने व्यवहार से सबको अपना बना लेती है.”
मैं तब तक कॉफी की ट्रे लेकर हॉल में दाखिल हो चुकी थी. पीयूष ने मेरी ओर ताका और मैंने भी. फिर मैंने नज़रें झुका ली.
मैंने सब कुछ सुन लिया था जो प्रशांत ने पीयूष से कहा. एक पल दोनों के बीच खामोशी छाई रही .
फिर प्रशांत मुस्कुराये और कॉफी का कप उठाकर पीयूष की ओर बढ़ा दिया. पीयूष प्रशांत का ये अंदाज़ देखकर मुस्कुराने लगा और कप थाम लिया.
प्रशांत ने कहा ” अनु आपकी डॉक्यूमेंट्री में अवश्य काम करेगी. क्यों अनु…? करोगी ना मेरी जान..”
हाँ शोना….”
“लो तो सब तय हो गया. अनु जो सपने तुम रोज़ देखती हो उसके पूरा होने का वक्त आ गया है.”
पीयूष और प्रशांत दोनों की नज़र मेरी कलाई पर बंधी घड़ी पर एक साथ पड़ी दोनों ने एक साथ कहा “द टाईटन” और फिर दोनों ठहाका लगा कर ज़ोर से हँस पड़े.
मैं …..मैं बस उनदोनों को देखकर मुस्कुरा रही थी| दोनों बच्चे अपने-अपने गिफ्ट्स मुझे दिखा रहे थे .
पीयूष ने उठते हुए प्रशांत से हाथ मिलाते हुए चलने की अनुमति माँगी .
पीयूष ने मेरी तरफ मुड़ते हुए कहा “अनु कल शार्प ग्यारह बजे स्टूडियो पहुँच जाना . कल से तुम्हारे जीवन में एक नया अध्याय़ जुड़ रहा है.
प्रशांत सर आपको भी आना है अपनी अनु का हौसला बढ़ाने के लियेट आयेगें ना..?”
प्रशांत ने मुस्कुरा कर स्वीकृति दे दी.
पीयूष के जाते ही प्रशांत मेरी तरफ मुड़े ,मैं स्वयं को रोक नही पाई और उनसे लिपट गई.
मेरी आँखों से आँसू बह रहे थे| प्रशांत ने मेरे आँसू पोंछे और मेरी तरफ प्यार भरी नज़रों से देखा जैसे कह रहे हों ” तुम मेरी हो अनु सदा से. मेरी अर्धांगिनी और मेरे बच्चों की माँ.मैं हमेशा तुम्हारा साथ दूँगा|.”
तभी मेरी कलाई पर बंधी घड़ी पर अलार्म की बीप बज उठी . हम दोनों हँसकर बोल पड़े “द टाईटन”!!!!
.(अंजू डोकानिया)