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Wednesday, June 11, 2025

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Daya Bhatt writes: किताब समीक्षा: “तपस्वी” – जीवन, संघर्ष और आत्मपरिवर्तन की गाथा

Daya Bhatt की लेखनी कर रही है समीक्षा एक गहन गंभीर पुस्तक तपस्वी की..यह समीक्षा आपको लेकर चलेगी पुस्तक के पृष्ठों से हो कर गुजरते हुए उसके सार की दिशा में..
अपनी प्रथम रचना *एक कप चाय और तुम* कहानी संग्रह से ही बहुचर्चित रहे राजस्थान के प्रसिद्ध लेखक आदरणीय सुनील पंवार को कई साहित्यिक सम्मानों से अलंकृत किया गया है, आपकी कहानी *आखिरी कॉल* का विभिन्न शहरों में कई बार नाट्य मंचन हो चुका हैl साहित्य के साथ-साथ कई और विधाओं में भी पारंगत आदरणीय सुनील पंवार जी के उपन्यास *तपस्वी* पढ़ने का सौभाग्य मुझे भी प्राप्त हुआ l
सुनील पंवार जी का उपन्यास *तपस्वी न केवल एक रोचक कथा है, बल्कि यह जीवन के गहरे प्रश्नों, संघर्षों और आत्मपरिवर्तन की पड़ताल भी करता है। यह कहानी उन धुंधली रेखाओं को उजागर करती है, जहां अच्छाई और बुराई आपस में घुलमिल जाती हैं l
*तपस्वी* एक ऐसे नायक की यात्रा है, जो परिस्थितियों के प्रभाव में आकर धीरे-धीरे खलनायक की छवि में ढल जाता है। समाज की कठोरता, जीवन की विडंबनाएं और आंतरिक द्वंद्व उसे उस रास्ते पर ले जाते हैं, जहां अच्छाई और बुराई का भेद मिटने लगता है। लेखक ने इस पात्र को आधुनिक रावण के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया है, जिससे यह प्रश्न उठता है – क्या बुराई को समाप्त करने के लिए रावण को जलाना ज़रूरी है, या सिर्फ उसकी बुराई को मिटाना पर्याप्त होगा ?
सुनील पंवार की लेखनी गहरी संवेदनशीलता और चित्रात्मकता लिए हुए है। वे अपने पात्रों को केवल शब्दों से नहीं, बल्कि उनकी भावनाओं, संघर्षों और निर्णयों के माध्यम से जीवंत बना देते हैं। उनकी भाषा सरल होने के बावजूद प्रभावशाली है, जो पाठकों को हर दृश्य का हिस्सा बना देती है।
इस उपन्यास का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है मुख्य पात्र का विकास, नायक की यात्रा केवल बाहरी घटनाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक आंतरिक यात्रा भी है, जहां वह अपनी पहचान, अपने कर्म और अपने उद्देश्य को लेकर लगातार संघर्ष करता है। यह आत्मपरिवर्तन ही इस उपन्यास की आत्मा है।
अंत में मैं कहना चाहूँगी कि *तपस्वी* समाज की उस सोच पर सवाल उठाता है, जहां अच्छाई और बुराई को काले और सफेद रंगों में बांट दिया जाता है। यह किताब पाठकों को यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हर खलनायक परिस्थितियों का शिकार होता है?
क्या उसके भीतर बदलाव की गुंजाइश नहीं होती? पूरी किताब पढ़ने के बाद मैंने महसूस किया कि *तपस्वी* सिर्फ एक उपन्यास नहीं, बल्कि एक दार्शनिक विमर्श है, जो पाठकों को आत्मनिरीक्षण की ओर ले जाता है। यह किताब उन लोगों को जरूर पढ़नी चाहिए, जो समाज, नैतिकता और मानवीय मनोविज्ञान को गहराई से समझना चाहते हैं।
(दया भट्ट दया)

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