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Saturday, June 14, 2025

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Anu Kanchan writes: जयपुर की महिला का वो पेइंग गेस्ट हाउस

Anu Kanchan के इस लेख से जानिये कि दुनिया कितनी विचित्र है..इसलिये विचित्र दुनिया से निपटने के लिये विचित्र नियम भी बनाने पड़ते हैं..
जयपुर में एक महिला हैं, जो एक पेइंग गेस्ट हाउस चलाती हैं। उनका एक पुश्तैनी घर है, जिसमें 10-12 बड़े कमरे हैं। उन्होंने हर कमरे में 3 बिस्तर लगा रखे हैं। उनके पेइंग गेस्ट हाउस में भोजन भी मिलता है। उन्हें खाना खिलाने का बहुत शौक है। वे बड़े मन से खाना बनाती और खिलाती हैं। उनके यहाँ इतना शानदार भोजन मिलता है कि कोई बढ़िया से बढ़िया शेफ भी वैसा नहीं बना सकता। शायद आपकी माँ भी आपको उतना प्यार से नहीं खिलाती होंगी, जितना वे खिलाती हैं। उनके पेइंग गेस्ट हाउस में ज़्यादातर नौकरी करने वाले लोग और छात्र रहते हैं। सुबह का नाश्ता और रात का भोजन तो सभी लोग करते ही हैं। और जिसे ज़रूरत होती है, वे दोपहर का भोजन पैक करके भी देती हैं।
लेकिन उनके यहाँ एक बड़ा अजीब नियम है। हर महीने में सिर्फ 28 दिन ही भोजन बनता है। बाकी 2 या 3 दिन सबको होटल में खाना पड़ता है। ऐसा नहीं है कि आप पेइंग गेस्ट हाउस की रसोई में खुद कुछ बना लें। रसोई उन 2-3 दिनों के लिए पूरी तरह से बंद रहती है। हर महीने के आखिरी तीन दिन मेस बंद रहता है। सभी को होटल में खाना पड़ता है, और चाय भी बाहर जाकर पीनी होती है।
मैंने उनसे पूछा कि ऐसा क्यों है? यह क्या अजीब नियम है? आपकी रसोई केवल 28 दिन ही क्यों चलती है? वे बोलीं, “यह हमारा नियम है। हम भोजन के पैसे भी 28 दिन के ही लेते हैं, इसलिए रसोई भी 28 दिन ही चलती है।” मैंने कहा, “यह क्या अजीब नियम है? और यह नियम भी कोई भगवान का बनाया हुआ तो है नहीं, आखिर आदमी का ही बनाया हुआ है, इसे बदल दीजिए।” उन्होंने कहा, “नहीं, नियम तो नियम है।” खैर, साहब, अब नियम है तो है।
उनसे अक्सर मुलाकात होती थी। एक दिन मैंने यूं ही फिर उस 28 दिन वाले अजीब नियम पर उन्हें छेड़ दिया। उस दिन वे खुलकर बोलीं, “तुम नहीं समझोगे, डॉक्टर साहब। शुरू में यह नियम नहीं था। मैं इसी तरह, इतने ही प्यार से खाना बनाती और खिलाती थी। पर उनकी शिकायतें कभी खत्म ही नहीं होती थीं। कभी यह कमी है, कभी वह कमी है – हमेशा असंतुष्ट और आलोचना करते रहते थे। इसलिए तंग आकर मैंने यह 28 दिन वाला नियम बना दिया।”
वो आगे बताती हैं – ”28 दिन प्यार से खिलाओ और बाकी 2-3 दिन बोल दो कि जाओ, बाहर खाओ। उन 3 दिनों में, उन्हें नानी याद आ जाती है। उन्हें आटे-दाल का भाव पता चल जाता है। उन्हें पता चल जाता है कि बाहर कितना महंगा और कितना घटिया खाना मिलता है। दो घूंट चाय भी 15-20 रुपये की मिलती है। उन्हें मेरी कीमत ही इन 3 दिनों में पता चलती है। इसलिए बाकी 28 दिन वे बहुत कायदे में रहते हैं।”

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