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Women’s Cricket World Cup 2025: बस एक ओवर ने हरा दिया भारत को और जीत गई साउथ अफ्रीका

Women’s Cricket World Cup 2025: हरमनप्रीत कौर का वह फैसला, जिसमें उन्होंने 47वां ओवर क्रांति गौड़ को सौंपा, मैच का सबसे अहम मोड़ साबित हुआ।

मुकाबला था दक्षिण अफ्रीका से। मैदान पर कैमरों की नज़रें उस वक्त पूरी तरह भारत की विकेट कीपर ऋचा घोष पर थीं, जो तेज़ क्रैम्प से जूझ रही थीं और फिज़ियो उनके इलाज में लगे थे। इसी बीच, दूसरी ओर दक्षिण अफ्रीका की मिनी हडल में आयाबोंगा खाका मैदान में अपनी बैटर पार्टनर नादिन डी क्लार्क को शांत करने की कोशिश कर रही थीं। वहीं, सब्बा राव एंड पर देखें तो दिखाई देती हैं बॉलर बक्रांति गौड़ जो थोड़ी घबराई हुई थीं। मैदान के बीज में तरफ हरमनप्रीत कौर और दूसरी तरफ रेनुका ठाकुर के बीच खड़ी थीं क्रान्ति गौड़।

आज बेन्च पर बैठी बॉलर रेणुका ठाकुर ने उन्हें पीठ पर थपथपाकर हौसला दिया और तुरंत फील्ड छोड़ दी ताकि खेल फिर शुरू हो सके। कप्तान कौर ने आगे बढ़कर क्रान्ति को गले लगाया और कुछ तेज़ शब्दों में जोश बढ़ाने की कोशिश की। लंबा ब्रेक होने के बाद ओवर की बची गेंदें बिना किसी खास घटना के पूरी हुईं — जैसा कि डी क्लार्क पहले ही समझ चुकी थीं।

लेकिन जो नज़ारा इस ओवर की पहली तीन गेंदों में देखने को मिला, उसने पूरे मैच की दिशा पलट दी।

असल में, हरमनप्रीत की इस समय पहली पसंद क्रांति गौड़ नहीं थीं। यहाँ इस स्टेज पर उनकी योजना थी कि अमनजोत कौर, जो इस मैच में रेनुका ठाकुर की जगह वापस आई थीं, डेथ ओवर्स की शुरुआत करें। उन्होंने 45वें ओवर से शुरुआत भी की थी और अगला ओवर करने की तैयारी में भी थीं। तभी हरमनप्रीत ने अचानक कवर प्वाइंट से गौड़ को बुलाया और अमनजोत को ऑफ साइड फील्ड में भेज दिया।

उस वक्त दक्षिण अफ्रीका को जीत के लिए 41 रन चाहिए थे 4 ओवर में, यानी रन रेट 10 से ऊपर जा चुका था। स्नेह राणा का पिछला ओवर 11 रन का गया था, जिसमें क्लोए ट्रायन का विकेट गिरा था।

गौड़ ने जैसे ही गेंद फेंकी, वह इतनी शॉर्ट थी कि डी क्लार्क के सिर के ऊपर से निकल गई और वाइड करार दी गई। हरमनप्रीत तुरंत मिडऑफ से दौड़कर आईं और कुछ कहा। अगली गेंद फुल थी — डी क्लार्क ने उसे डीप मिडविकेट के ऊपर से छह रन के लिए भेज दिया। हरमनप्रीत फिर पहुंचीं, इस बार कहा — “ब्लॉकहोल में डालो।” मगर युवा गेंदबाज़ ने कोशिश में ओवरपिच कर दी और गेंद स्ट्रेट ड्राइव होकर दोबारा छह रन के लिए चली गई।

इस बार ऋचा घोष भी विकेट के पीछे से दौड़कर आईं और कुछ शब्दों में सलाह दी। डी क्लार्क को समझ आ गया कि अब स्लोअर बॉल आने वाली है। वह तैयार थीं — ऑफ साइड पर फील्ड ऊपर थी, उन्होंने थोड़ा हटकर खेला और गेंद को लगभग तीसरी बार सीमा रेखा के पार भेज ही दिया।

सिर्फ तीन शॉट में मैच का समीकरण पूरी तरह बदल गया। अब तक 81/5 पर संघर्ष कर रही दक्षिण अफ्रीका की टीम अचानक जीत की दहलीज पर थी। डी क्लार्क ने कुछ ही गेंदों में अपना स्कोर 28(33) से बढ़ाकर 50(40) कर लिया — वो भी लगातार छक्कों के साथ।

डी क्लार्क ने बाद में कहा, “हमें लगा कि ऋचा घोष का क्रैम्प कुछ ज़्यादा ही समय ले रहा था। हमें महसूस हुआ कि भारत जानबूझकर खेल धीमा कर रहा है ताकि हमारा रिद्म टूट जाए। लेकिन आखिर में वही ब्रेक हमारे लिए फायदेमंद साबित हुआ — हमने थोड़ा रिफ्रेश किया, मैंने अपना दिमाग रीसेट किया और नई रणनीति बनाई।”

वास्तव में, उस रुकावट के बाद दक्षिण अफ्रीका ने मैच पर पूरी पकड़ बना ली। डी क्लार्क ने बाकी बचे 41 में से लगभग सारे रन खुद बनाए और खाका के साथ सिर्फ 18 गेंदों में मैच खत्म कर दिया। इसके बाद भारतीय गेंदबाज़ों ने कुछ फुल टॉस और वाइड भी फेंकीं, जिन्हें डी क्लार्क ने बिना दया के बाउंड्री पार पहुंचाया।

मैच के बाद कई सवाल उठे — आखिर हरमनप्रीत ने आखिरी पल में अमनजोत की जगह गौड़ को क्यों बुलाया? क्या यह कप्तानी का सहज निर्णय था या थकान और फिटनेस को देखते हुए कोई रणनीतिक बदलाव? गौड़ के पास दो ओवर बचे थे जबकि अमनजोत कई और फेंक सकती थीं। हरमन खुद छठी गेंदबाज़ के रूप में मौजूद थीं।

आख़िरकार, नतीजा वही रहा — डी क्लार्क ने अमनजोत की गेंदों को भी उतनी ही बेरहमी से बाउंड्री के पार भेजा और मैच एक ओवर शेष रहते जीत लिया।

“इस पिच पर सीमर को खेलना आसान था,” डी क्लार्क ने कहा। “हम जानते थे कि अगर आखिरी ओवरों में पेसर आए, तो हमें मौका मिलेगा। हमने योजना बनाई थी कि मैच को गहराई तक ले जाएं और फिर तेज़ गेंदबाज़ों पर हमला करें। वही किया।”

मैच खत्म होने के बाद जब भारतीय डगआउट में सन्नाटा था, हरमनप्रीत और गौड़ पास-पास बैठी थीं — दोनों की निगाहें मैदान पर चल रहे जश्न पर टिकी थीं। दक्षिण अफ्रीका की यह जीत भारत के लिए सिर्फ एक हार नहीं, बल्कि चेतावनी थी — कि पाँच मुख्य गेंदबाज़ों की रणनीति बड़े मैचों में खतरा बन सकती है।

इस एक ओवर ने न केवल मैच की दिशा बदली, बल्कि भारत को यह भी सिखा गया कि कभी-कभी एक कप्तानी फैसला, चाहे कितना भी सोच-समझकर लिया गया हो, पूरे मुकाबले की किस्मत बदल सकता है।

(प्रस्तुति -सुमन पारिजात)

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