Sulakshana Pandit की जिन्दगानी बताती है कि भाग्य ही प्रबल होता है, कला, हुनर, पैसा, शोहरत और मुहब्बत सब इसके पीछे चलते हैं..
ये बात 1960 के दशक के आखिरी सालों की है। उस समय संगीतकार ललित पंडित बहुत छोटे थे। हर हफ्ते वे मुंबई के शन्मुखानंद हॉल जाया करते थे क्योंकि वहाँ हर हफ्ते किशोर कुमार जी का लाइव शो होता था। ललित जी खुद किशोर दा के बड़े फैन थे, लेकिन एक और खास वजह थी वहां जाने की—किशोर दा के साथ उनकी बड़ी बहन सुलक्षणा पंडित भी मंच पर गाती थीं।
एक इंटरव्यू में ललित पंडित जी ने बताया,
“किशोर दा और सुलक्षणा दीदी ने देश के अलग-अलग शहरों में साथ में कई लाइव शोज किए। 1970 के शुरूआती वर्षों में, मैंने और मेरी बहन विजेयता ने किशोर दा के कुछ गानों में बच्चों के कोरस के रूप में भी आवाज़ दी थी, जैसे 1972 की फ़िल्म अपना देश का गाना ‘रोना कभी नहीं रोना’ और उसी साल की फ़िल्म परिचय का ‘सा रे के सा रे गा मा को लेकर गाते चलें।'”
सुलक्षणा पंडित जी की बतौर गायिका पहली फ़िल्म 1971 की ‘दूर के राही’ मानी जाती है। लेकिन असल में उन्होंने इससे पहले भी गाया था—1967 की फ़िल्म ‘तक़दीर’ में। उस समय वो एक किशोरी थीं और उन्होंने लता मंगेशकर जी के साथ गाना गाया था, “पप्पा जल्दी आ जाना।” इसके बाद भी उन्होंने कई फ़िल्मों में किशोरावस्था में गाया—जैसे बंबई रात की बाहों में (1968), राहगीर (1969) और महुआ (1969)।
छोटे भाई ललित पंडित ने ही बताया कि किशोर दा ने ही सुलक्षणा जी को सलाह दी कि अगर उन्हें हिंदी सिनेमा में अपनी पहचान बनानी है, तो उन्हें गायकी के साथ-साथ अभिनय (Acting) भी करना चाहिए।
ये सुन कर किशोर दा ने भी सुलक्षणा से कहा, -“तुम खूबसूरत हो, तुम्हें खुद अपने डायरेक्टर-प्रोड्यूसर से कहना चाहिए कि तुम्हारे गाने तुम्हीं से गवाएं जाएं।”
सौभाग्य से उन दिनों गायक अभिनेता और निर्देशक किशोर कुमार स्वयं भी एक फ़िल्म का निर्माण कर रहे थे—’दूर के राही’, जिसमें उन्होंने सुलक्षणा जी को पहला बड़ा मौका दिया। इस फ़िल्म में सुलक्षणा जी और किशोर दा ने साथ में गाना गाया: “बेक़रार दिल तू गाए जा…”
विशेष बात इस फ़िल्म में ये थि कि इसकी कहानी, संगीत और कुछ गीत भी खुद किशोर कुमार जी ने लिखे थे। एक और दिलचस्प बात ये भी थी कि इस गाने में किशोर दा ने अपने बड़े भाई अशोक कुमार (दादामुनि) के लिए और सुलक्षणा जी ने तनुजा जी के लिए गाया था।
ईशकृपा से यही गाना सुलक्षणा जी के करियर के लिये एक बड़ा ब्रेक सिद्ध हुआ। इसके चार वर्षों के बाद भाग्य ने उनको एक और खुशखबरी दी. सुलक्षणा पंडित को साल 1975 में ‘उलझन’ फ़िल्म से उन्होंने एक्ट्रेस के तौर पर डेब्यू करने का अवसर प्राप्त हुआ। इस फ़िल्म में भी अशोक कुमार और संजीव कुमार जैसे दिग्गज कलाकार थे।
इसके बाद सुलक्षणा पंडित का फिल्मी करियर तेज़ी से आगे बढ़ा, लेकिन बहुत लंबा नहीं चला। कुल मिला कर देखा जाये तो लगभग 12 साल तक वो फिल्मी दुनिया में सक्रिय रहीं। उनकी आखिरी फ़िल्म ‘दो वक़्त की रोटी’ थी, जो 1988 में आई।
ठीक इसके एक साल पहले 1987 में गायन से भी उन्होंने दूरी बना ली थी, लेकिन 1996 में संजय लीला भंसाली की फ़िल्म ‘खामोशी: द म्यूज़िकल’ में उनके प्रशंसकों ने फिर एक गीत उनकी आवाज में सुना ।
इसके बाद सुलक्षणा जी ने अपनेआप को फ़िल्मों से और फिल्मी दुनिया से पूरी तरह दूर कर लिया। परंतु क्यों?
इसका जवाब उनके दुनिया भर में बैठे प्रशंसक जानना चाहते थे। पर ये जवाब भी उनके जीवन की एक दर्दभरी सच्चाई में छिपा रहा और वो था उनका अधूरा प्यार।
सुलक्षणा पंडित जी को संजीव कुमार से गहरा प्रेम था। वो उनसे शादी करना चाहती थीं, लेकिन संजीव जी को लगने लगा था कि वो ज़्यादा समय तक जीवित नहीं रहेंगे। उन्होंने सुलक्षणा जी का प्रेम स्वीकार नहीं किया।
इस अस्वीकृति ने सुलक्षणा जी का दिल तोड़ दिया, लेकिन उन्होंने उम्मीद नहीं छोड़ी। उन्हें विश्वास था कि शायद एक दिन संजीव जी मान जाएंगे। मगर संजीव कुमार की असमय मृत्यु ने उनके सपनों को पूरी तरह चूर कर दिया।
इस गहन पीड़ा का प्रभाव उनकी मानसिक स्थिति पर भी पड़ा। वो भीतर ही भीतर बहुत टूट गईं। और तब उन्होंने बहुत बड़ा निर्णय लिया कि वो अब जीवन में कभी शादी नहीं करेंगी, क्योंकि उनके दिल में अब किसी और के लिए जगह नहीं बन सकती थी।
आज सुलक्षणा जी का 71वां जन्मदिन है। उनका जन्म 12 जुलाई 1954 को हुआ था। आज वे अपनी छोटी बहन और कभी बहुत प्रसिद्ध रही एक्ट्रेस विजेयता पंडित के साथ रहती हैं।
सुना जाता है कि उनकी मानसिक स्थिति अब भी पूरी तरह स्वस्थ नहीं है। यही कामना है कि कि ईश्वर उन्हें अच्छा स्वास्थ्य और सुख प्रदान करे।
(प्रस्तुति – अंजू डोकानिया)