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Thursday, March 13, 2025

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Sujata writes: आज ही के दिन छत्रपति संभाजी महाराज राजधर्म निभाते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे

Sujata writes: मार्च 11, 1689 आज ही के दिन छत्रपति संभाजी महाराज (शिवाजीराजे भोसले) क्षत्रिय धर्म निभाते हुए राजधर्म निभाते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे..
कल रात ही मैने भी “छावा” फिल्म देखी…. यह फिल्म एक मिसाल है कि देश वीर योद्धाओं के जीवन पर फिल्म बनाए तो कैसे बनाएं! यही नहीं, पहली बार किसी फिल्म निर्देशक ने हिम्मत की है औरंगजेब जैसे क्रूर शासक की क्रूरता, विक्षिप्तता और दरिंदगी को दिखाने की!
जोधा अकबर से लेकर बाजीराव राव मस्तानी तक भरी पड़ी है सुपरहिट हिंदी फिल्में जिनमें मुगल शासकों को बेहद खूबसूरत, मानवीय,सलीकेदार दिखाया जाता है…जो अपनी पत्नियों को बहुत चाहते हैं…बाजीराव जैसे योद्धा पर फिल्म बनाई तो उसे मस्तानी का आशिक बना के मरवा दिया!
बाजीराव को नाचते,कूदते, दिखाया, रोमांस करते दिखाया..पत्नी को धोखा देकर मस्तानी के लिए पूरी परिवार से लड़ते दिखाया! पद्मावत में अलाउद्दीन खिलजी को रानी पद्मावती का महान प्रेमी दिखा दिया… भव्य सेट बनाकर,डिजायनर कपड़े पहनकर, भव्य संगीत,नृत्य,कोरियोग्राफी दिखाकर ऐतिहासिक तथ्यों का बंटाधार करने वाले “संजय लीला भंसाली” और आशुतोष गोवारिकर जैसे फिल्मकारों को डूब मारना चाहिए “छावा” जैसी सच्ची और ईमानदार फिल्म देखकर!
भंसाली जी, सच बिल्कुल खरा होता है,बेबाक होता है और इसीलिए सच आकर्षक होता है!सुकूनभरा होता है! झूठ को भव्य बनाकर ,सजा – धजाकर बेचा जाता है आपकी फिल्मों की तरह! छावा फिल्म में वो सब कुछ है जो आपकी फिल्मों में कभी नहीं होता! एक मजबूत पटकथा!तथ्य और मजबूत कहानी….
जिसके पास सच कहने की हिम्मत हो उसे फिर भव्य सेट, संगीत, मेकअप, स्टारकस्ट की फिगर और बॉडी दिखाने की जरूरत नहीं पड़ती! यह सत्य की ही ताकत है इस फिल्म की सफलता और लोकप्रियता! ….
संभाजी महाराज जैसे महान व्यक्तित्व को हमारे यहां इतिहास में वह महत्व नहीं मिला जिसके वो अधिकारी थे…इस फिल्म को विभिन्न कॉलेज और विश्वविद्यालयों में दिखाया जाना चाहिए! 9 बरस तक लड़े संभाजी जी औरंगजेब से…और पकड़े भी गए तो अपने ही घर के विभीषणों के कारण! और जिस क्रूरता के साथ औरंगजेब ने संभाजी को यातनाएं दी वो मुगलिया शासन का एक नंगा सच है!
हर रात एक नई यातना ! जंजीरों में कैद संभाजी की सारी उंगलियों के नाखून चिमटे से खींचकर निकलवाना…. जख्मों और घावों पर मुट्ठी भर –भर के नामक लगाना…आंख निकलवा देना और फिर जुबान भी चिमटे से खींचकर बाहर निकाल देना! कि शिवाजी के पुत्र को जिसने 9 साल हमें युद्ध में पराजित किया है उसे तड़पा –तड़पा कर मारने की इच्छा लिए बैठा था औरंगजेब!
लेकिन उस महान योद्धा ने न तो इस्लाम कुबूल किया और न हार मानी…मरते दम तक उसके मुंह से सिर्फ “जय भवानी” ही निकलता रहा….. इस फिल्म में जिस ईमानदारी के साथ, जिस सच्चाई और सादगी के साथ मराठों की युद्ध कला दिखाई है वह काबीले तारीफ है!
साथ ही औरंगजेब और उसकी सेना की जो क्रूरता और अत्याचार दिखाएं है उसके लिए फिल्मकार प्रशंसा और पुरस्कार के पात्र है….बल्कि यह फिल्म देखकर लगा कि एक बेबाक फिल्म औरंगजेब के क्रूर शासन पर भी बननी ही चाहिए! क्यों बुरा लगेगा किसी को!
जिस औरंगजेब ने पूरे देश को लूटा,लाखों लोगों की हत्याएं की, सैकड़ों मंदिर ,विद्यालय और पुस्तकालय तोड़ दिए, जिसकी सेना में लाखों भारतीय स्त्रियां रखैल बनकर हरम में रहने को मजबूत हुई, उस औरंगजेब से किसी को लगाव कैसे हो सकता है! समय है एक ऐसी ही साहसी फिल्म औरंगजेब पर बने और उसमें औरंगजेब का किरदार यही अक्षय खन्ना निभाएं!
गजब का अभिनय किया है …विक्की कौशल तो है ही कुशल अभिनेता किंतु अक्षय खन्ना ने एक अलग छाप छोड़ी है… रश्मिका मंदाना, आशुतोष राणा,विनीत कुमार सिंह सभी का अभिनय बेहतरीन है,प्रभावशाली है…… जिन्होंने भी अभी तक नहीं देखी है फिल्म वो परिवार सहित,मित्रों सहित देखकर आए… यह फिल्म नहीं एक बेहद जरूरी ऐतिहासिक दस्तावेज है!
(सुजाता मिश्रा)

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