Sujata की लेखनी भावना की जिस गहराई पर जा कर सोचती है, कदाचित हम नहीं सोचते..किन्तु यही है यथार्थवादी सत्य, अंततोगत्वा..
आप कितने भी पढ़े –लिखें हो,डॉक्टर हों, इंजीनियर हों,व्यापारी हों या अफसर आप सफलतम व्यक्ति हो सकते हैं… ओवर प्रैक्टिकल,स्वार्थी और कुटिल हो सकते हैं, पूर्वाग्रही, अवसरवादी ,प्रपंची और अंहकारी हो सकते हैं किन्तु यदि आपने डूबकर,महसूस कर साहित्य नहीं पढ़ा तो आप कभी मानव मन की व्यथाओं, कुंठाओं, हीनभावनाओं, असुरक्षाओं को नहीं समझ सकते!
आप कभी एक उम्दा इंसान नहीं बन सकते! एक ऐसा व्यक्ति नहीं बन सकते जिसने अपने जीवन में मिली पीड़ाओं,मानसिक यातनाओं को इस तरह समझकर जिया हो कि फिर दूसरों के प्रति जिम्मेदार , उदार और संवेदनशील बन गया हो!
साहित्य पढ़ने वाला व्यक्ति कभी मनोरोगी नहीं हो सकता , जीवन से नहीं हार सकता..साहित्य अपने आप में अनेक मानसिक समस्याओं का इलाज है, दवाई है..आप वास्तव में साहित्य पढ़िए, उसमें डूब जाइए, उसे महसूस कीजिए…चिंतन कीजिए..उसे आत्मसात कर लीजिए..फिर आप कभी दूसरों के जीवन और व्यवहार को देख पूर्वाग्रहग्रसित उपदेश नहीं देंगे!
…आप हर वक्त आत्मनिंदा नहीं करेंगे…बल्कि आप समझेंगे कि सभी के जीवन में बहुत कुछ अप्रत्याशित घटित होता रहता है..आप समझेंगे कि प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी रूप में,कुछ न कुछ भुगत ही रहा है!
आप लोगों को माफ करना सीखेंगे..छोड़ना और छोड़कर पुनः अपनाना भी सीखेंगे…भावुक होते हुए भी विवेकशील बने रहेंगे..और इसीलिए आप धीरे –धीरे अपने जीवन में मिली पीड़ाओं की स्मृतियों के बोझ से मुक्त होते जाएंगे..और जीवन के प्रति विनम्र भी ..