STORY
(श्री गणेशाय नमः)
पढ़िए ये कहानी जिसमें एक माँ की ममता ने कैसे एक भोली-भाली लड़की को पूरे आत्म-सम्मान के साथ जीने की संस्कार दिए..
बचपन में परियों की कहानियाँ सुना करती थी माँ से. लोरी सुनाती थी माँ. जब-जब मुझे रातों को नींद नहीं आती थी….. माँ सिरहाने बैठकर सर सहलाती, माथा चूमती और लोरी गाती.
ये लोरियाँ भी कितना सुकून देती हैं ना…. इसका नाता माँ से जुड़ा है. हर कोई…. हर कोई यही कहता है
“माँ की लोरी”…है ना.
समय के साथ लोरी की स्वरूप बदलता गया.
पहले माँ गाती थी “लल्ला-लल्ला लोरी, दूध की कटोरी”….फिर “आ चल के तुझे मैं ले के चलूँ इक ऐसे गगन के तले”
“गुड़िया रानी, बिटिया रानी परियों की नग़री से इक दिन राजकुँवर जी आएगें महलों में ले जाएगें”
फिर कहने लगी… ” चंदा के रथ पे वो आएगा इक दिन तुझे साथ ले के वो जाएगा इक दिन तेरी माँग भर देगा तारों से वो बनाएगा दुल्हन तुझे. “….और मैं….. मैं सपने देखने लगी जो माँ की लोरी ने मुझे दिखाया.
उम्र के इक्कीस बसंत कब पंख लगा कर उड़ गए पता ही न चला.
अब तक जीवन किसी सुंदर स्वप्न जैसा ही तो था मेरे लिए. जहाँ धरती पर सुंदर फूल, बाग़-बग़ीचे, माँ-पिताजी का दुलार, बहन-भाईयों का साथ, दादी की परवाह, चाचा का दुलार, चॉकलेट, आइसक्रीम और मेरी पक्कम-पक्की मित्र कविता थी.
बस यही तो दुनिया थी मेरी. कुछ और भी सपने थे जहाँ अनंत आकाश में मेरी बिन पंख उड़ने की योजनाएँ थीं.
लगता था सब कुछ कितना आसान होगा एक जादुई चिराग़ की तरह पलक झपकते ही जिन्न प्रकट हो जायेगा और जो चाहो वो मिल जाएगा.
ये सब इसलिए बता रही हूँ क्यूँकि जब तक माता-पिता आपके साथ होते हैं तब तक दुख की परछाई आपको छू भी नही पाती. कितने जतन से सींचते हैं वो अपनी संतान रूपी बेल को जो उनके सहारे के बिना नही फैलती.
इतना प्यार और दुलार सिर्फ और सिर्फ माँ-बाप से ही मिलता है हमें परन्तु माँ ने आत्म-निर्भरता का पाठ सदैव पढ़ाया पिताजी के अथक श्रम, माँ के प्रेम और प्रार्थनाओं ने हम सभी भाई-बहनों को आत्म-निर्भर बना दिया था.
एक अच्छे CA कंपनी में जॉब करने लगी थी. अच्छे काम और वर्क डेडिकेशन की वजह से से इन्क्रीमेंट भी मिला. बस ज़िन्दगी मस्त चल रही थी.
फिर वो समय भी आया जब माँ की लोरी, बाबुल का अंगना, भाई-बहन, सखियाँ, वो लड़कपन, वो….. बचपन सब कुछ छूट गया पीछे.
वो आ गया था मेरा राजकुमार जिसके सपने माँ की लोरी ने ही दिखलाए थे. विवेक अच्छे हैं पर मेरे सपनों को उन्होने कभी तवज्ज़ो नही दी.
माँ कहती थी – “सकारात्मक सोचो तो सब कुछ अच्छा-अच्छा ही होता है मेरी लाडो. “
लाडो… लाडो… आज भी उनकी मधुर आवाज़ कानों में गूँजती है, लगता है फिर से पुकारेगीं,, पर इस दफा अंदाज़ कुछ और होगा.
“क्या हुआ लाडो? क्यूँ इतनी उदास हो.? क्यूँ तुम्हारे चेहरे की हँसी, तुम्हारी चंचलता, सरसता ,अल्हड़पन कहीं खो गए हैं.. बोल ना लाडो. “
“माँ… तुम कहाँ चली गई मुझे अकेला छोड़कर?
जानती हो कितनी बेरंग है ये दुनिया, जबसे तुम गई इस दुनिया का स्वरूप बदल गया माँ. न यहाँ नि:स्वाार्थ प्रेम है, ना हृदय की सुंदरता, ना परवाह, न लगाव बस स्वार्थ है…घाव है… प्रताड़ना है, शोषण है, ग़ुलामी की दास्तां है. “
माँ मुस्कुराने लगी…. “बेटा दुनिया हमेशा से ऐसी ही है…. जब मैं तुम्हारे साथ थी तब भी पर जीवन में सुख-दुख दोनों आएगें,अच्छे-बुरे दोनों तरह के लोग मिलेगें.
मैंने तुम्हें वो दिया जिससे तुम्हें खुशी मिली….. सकारात्मक सोच. अब तुम भी दूसरों को वही दो,, यही जीवन है. “
“पर क्या वो परियों की कहानी वो अलाद्दीन का चिराग़ क्या बस कहानियों में ही होते हैं माँ?”
“ऐसा नही है लाडो…. तुम अपने माँ-पिताजी की सदैव परी रहोगी. मानव जीवन अनमोल है. इसे पाना ही किसी अलादीन के चिराग़ से कम नही.
अपने इस जीवन रूपी करामाती चिराग़ के जिन्न तुम स्वयं हो लाडो. अब तुम्हारा फर्ज़ बनता है और ज़िम्मेदारी भी कि तुम अपना और दूसरों का जीवन सुंदर कैसे बनाते हो. “
“ओहहह… जैसे आपने मेरा जीवन खुशियों से भर दिया था, ठीक वैसे ही ना माँ.?”
“हाँ लाडो.. “
“माँ आज तुमने मुझे सपने और अपनों के बीच संतुलन बनाकर जीने का एक और नुस्खा सिखाया है.
तुम्हारी वो लोरी मैं अपने बच्चों को सुनाती हूँ, वो कहानियाँ भी जो मुझे धरोहर में तुमसे मिली हैं.
तुमने मुझे वो सब सिखाया जो एक नारी का कर्तव्य है मगर उसके साथ दिया वो स्वाभिमान भी ताकि मैं अपने घर और समाज में अपने अधिकारों के साथ सबका प्रेम व सम्मान करते हुए एक सफल पत्नी, बहू और माँ बन सकूँ.
थैंक्यू माँ मुझे इतनी सुंदर परवरिश और जीवन देने के लिए मैं आपकी सदैव आभारी रहूंगी. अब मेरा भी यही लक्ष्य होगा कि मैं मेरे अपनों के जीवन में वही रंग भरूँ जो तुमने मेरे जीवन में भरे. लव यू माँ !
(अंजू डोकानिया, काठमांडू)
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