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Wednesday, June 11, 2025

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Story By Seema Devendra Pandey: यहां की आप चिंता मत करो भाभी, मैं सब देख लूंगी

Story By Seema Devendra Pandey:पढ़िये अपने और परायों की पहचान कराती ये हृदयस्पर्शी कहानी….

 

यहां की आप चिंता मत करो भाभी, मैं सब देख लूंगी… आप बेफिक्र होकर जाओ। अगर कोई और मदद आपको चाहिये होगी तो आप बस एक फोन कर देना। मैं मैनेज कर दूंगी” नंदनी की पड़ोस वाली भाभी सीमा की बात सुनकर उसे तसल्ली हुयी और उसने तिरछी नज़रों से अपने पति विनय को देखा और आंखों ही आंखों में कह दिया कि आप जिसे हमेशा पराया कहते थे आज वही अपनों से भी ज्यादा अपने निकले।

नंदनी ने अपनी दोनों बेटियों को प्यार किया और सीमा के सुपुर्द करके अपने मायके चली गयी। नंदनी की बेटियों के बोर्ड एग्ज़ाम पास होने से उन्हें वो अपने साथ नहीं ले जा सकती थी।

वैसे शहर में अपने लोग कहने वालों में नंदनी की ननद कंचन भी रहती है जो हमेशा तीज-त्यौहार पर अपना हक़ लेने बराबर आ जाती है और खुद अपने घर में जरुरत हो तो नंदनी को आदेश देकर अपने यहां बुला लेती है। लेकिन आज जब नंदनी ने अपनी बेटियों के साथ कुछ दिन रुकने के लिए बुलाया तो उसने साफ इंकार कर दिया कि उसकी सास ने मना किया है क्योंकि उसकी ननद आ रही है और उसकी सासूजी को पसंद नहीं कि भाभी के रहते हुए उनकी बेटी घर में काम करे।

नंदनी अपने मम्मी-पापा की इकलौती बेटी है। उसकी शादी के बाद वो लोग अकेले हो गए लेकिन उसके दोनों चाचा-चाची वही साथ में ही रहते थे तो नंदनी मम्मी-पापा की तरफ से चिंतामुक्त थी। लेकिन सुबह खबर आयी कि पापाजी सीढ़ियों से फिसल गए। चोट ज्यादा लग गयी है डॉक्टर ने 24 घंटे का समय दिया है। इसलिये नंदनी के चाचा ने फोन करके नंदनी को तुरंत बुलाया। नंदनी की एक बेटी 10th में और एक 12th में है, इसलिए वो चाहती थी कि कंचन आकर कुछ दिन बेटियों के साथ रह जाए।

नंदनी का स्वभाव ऐसा है कि वो कभी भी किसी की तकलीफ सुन-देख नहीं पाती। इसलिए जैसे ही सोसाइटी में किसी की भी तकलीफ या परेशानी सुनती तो तुरंत उसकी मदद के लिए पहुंच जाती फिर वो खाना बनाकर देना हो, साथ में अस्पताल जाना हो या किसी की शॉपिंग करवानी हो। जहां तक हो सकता नंदनी सबकी मदद करने के लिए हमेशा आगे रहती।

उसकी इस आदत से विनय बहुत चिढ़ता और ये सब करने के लिए मना करता। तब नंदनी हंसते हुए विनय से कहती,”शुक्र मनाइए मेरी इसी आदत की वजह से आपकी बहन को बहुत आराम है वरना वो किसे बुलाती। मुझें पता है कि कल को अगर मुझे मदद की जरुरत पड़ी तो यही पराये लोग अपने बन जाएंगे।”

“मदद? लेकिन इन परायों की मदद हमें क्यों पड़ेगी? तुम भूल रही हो कि मेरी अपनी सगी बहन और जीजाजी यही इसी शहर में रहते है। जब जरुरत होगी तुरंत आ जाएंगे” विनय बहुत ही तन कर बोलता था।

विनय की बात सुनकर नंदनी बस मुस्कुरा देती और मन ही मन कहती,”पतिदेव! अभी आप अपनी बहना को समझ ही नहीं पाए है। वो सिर्फ मतलब की रिश्तेदार है। जो अपने घर की जिम्मेदारी खुद नहीं उठा सकती, आए दिन मुझे बुलाती है वो आपकी मदद करेगी… कभी नहीं।”

और आज विनय का सिर शर्म से झुका हुआ था। उसने जब बेटियों को संभालने के लिए कहा तो अपना ही रोना लेकर बैठ गयी और वही जैसे ही सीमा को पता चला तो तुरंत घर आ गयी कि बेफिक्र होकर जाईये हम लोग देख लेंगे। सच में कभी-कभी अपने खून के रिश्तों से बढ़कर होते है यह परायों के अपनेपन के रिश्ते…

क्या आपके पास है ऐसे रिश्ते जिनसे आपका खून का रिश्ता नहीं है लेकिन फिर भी आपको अपनेपन का अहसास कराते है।

दोस्तों मैं यह नहीं कहती कि सभी ननद ऐसी होती हैं लेकिन जो होती हैं यह कहानी सिर्फ उनके लिए है.
और उनके लिए भी जो एक पड़ोसी की नाते और एक अच्छे दोस्त के नाते बिना किसी सस्वार्थ के हर दम आपकी मदद के लिए खड़े रहते हैं।

(सीमा देवेंद्र पांडे)

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