(Story by Lakshmi Kumawat)
भाभी जब मैं मायके आऊं तो आप घर पर ही रहा कीजिए!
” मम्मी जी या तो आप दीदी को बोल दो कि रोज-रोज मायके आना बंद करे। या फिर आप खुद ही उन्हें संभाल लो। मैं यूं हर रोज छुट्टी तो नहीं ले सकती हूं ना”
मानसी ने गुस्सा होते हुए कहा।
” बहु बोलने से पहले एक बार सोच तो लो कि बोल क्या रही हो। तुम होती कौन हो ये कहने वाली कि मेरी बेटी को मायके आना है या नहीं आना है”
ममता जी गुस्सा होते हुए बोली।
” सही कहा मम्मी जी, मुझे बोलने का हक नहीं है। लेकिन कम से कम आपको तो बोलने का हक है। आप तो उन्हें समझा सकती हो। एक तो वो जब चाहे यहां आ जाती है। और फिर उम्मीद करती है कि मैं छुट्टी लेकर घर पर रहूं। भला ये कैसे पॉसिबल है। नौकरी करती हूं, मुझे भी दस जवाब देने पड़ते हैं”
” बड़ी तेरी कमाई से हमारा घर चल रहा है, जो इतना एहसान जताती है। तेरी नौकरी के चक्कर में मैं अपनी बेटी का मायका खत्म नहीं कर सकती। अरे जब मेरी ननद आती थी ना तो मैं तो अपना हर काम कैंसिल करके उसकी सेवा में घर पर हाजिर रहती थी। तेरी तरह नाटक नहीं करती थी। पर तुम आजकल की लड़कियों को तो रिश्ते सुहाते कहां है। और कौन सा तुम सारी चीज खुद बनाती हो। हम तो एक-एक पकवान अपने हाथों से बना कर खिलाते थे। और तुम लोग कामचोरों की तरह आधे से ज्यादा सामान तो बाजार से मंगवा लेती हो। जैसे मुफ्त में आता है सब सामान। मेरी बेटी तो आएगी और जरूर आएगी। तुम्हें जो करना है कर लो”
ममता जी एक तरह से आर्डर देकर अपने कमरे में चली गई। मानसी की समझ में ही नहीं आया कि वह करें तो कर क्या।
वह अपनी ननद पूनम से परेशान हो चुकी थी।
आए दिन जब चाहे वह उठकर मायके आ जाती और फिर उम्मीद करती कि मानसी छुट्टी लेकर घर पर रहे।
एक दो बार मानसी घर पर नहीं रुकी तो पूनम ने इतना हंगामा कर दिया कि शाम को मानसी और उसके पति राजेश
के बीच फिर झगड़ा ही हुआ। और फिर ममता जी भी कहां कम थी। वो भी दो की चार लगाकर दोनों के झगड़े को
हवा ही देती थी।
और अभी उसे यहां आकर गए हुए ज्यादा दिन भी नहीं हुए थे। पिछले सप्ताह ही दो दिन के लिए रूक कर गई थी। और
आज फिर आ रही है। ननदोई जी का मार्केटिंग का काम है आए दिन उन्हें बाहर जाना पड़ता। अब वो जब भी बाहर जाते, पूनम अपने मायके चली आती।
सास ससुर तो वैसे भी जेठ जेठानी के पास रहते थे। इसलिए कोई जिम्मेदारी भी नहीं थी। और ना ही कोई बच्चे थे जो
स्कूल जा रहे हो। अकेली रहती थी इसलिए जब चाहे यहां चली आती थी।
लेकिन फिर यहां आकर वो मानसी से उम्मीद करती थी कि मानसी घर पर ही रहे जबकि मानसी एक नौकरी पेशा महिला थी। मानसी और राजेश का एक दस साल का बेटा था जो
स्कूल में पढ़ता है। मानसी उसी के स्कूल में पढ़ाती थी।
जब पिछली बार पूनम यहां रहने आई थी। उस समय स्कूल में एग्जाम चल रहे थे। किसी भी टीचर को छुट्टी लेना अलाउड
नहीं था। इसलिए मानसी सबके लिए सुबह खाना और नाश्ता साथ ही बनाकर रख गई थी।
जब पूनम ने यह देखा तो वो नाराज हो गई और ममता जी के सामने शिकायत करते हुए बोली,
” क्या मम्मी यही इज्जत है क्या मेरी। भाभी के होते हुए भी ठंडा खाना ही खाना पड़ेगा। इससे तो यहां ना आती तो ही अच्छा था। कम से कम अपने घर पर अपने हिसाब से बनाकर खा तो लेती”
” अब बेटा मैं भी क्या करूं। छुट्टी लेने के लिए कहा था। लेकिन उसने तो बहाना बना दिया कि स्कूल में परीक्षाएं चल रही है। छुट्टी नहीं मिलेगी। ला मैं ही गर्म करके ला देती हूं”
ममता जी भी बेचारी बनते हुए बोली।
” क्या मम्मी, इतना सिर चढ़ा रखा है आपने भाभी को। एक ही ननद हूं, उसके लिए भी छुट्टी नहीं ले सकती थी। अरे टीचर ही तो है। कौन सी कहीं की प्राइम मिनिस्टर है जो छुट्टी नहीं ले सकती। उनकी कमाई के बगैर आपका घर नहीं चलता है क्या, जो उनसे छुट्टी नहीं करवा सकती थी आप”
” जो तू मुझे सुना रही है ना वह तेरे भाई को सुनाना। दोनों पति-पत्नी मुझे समझते ही क्या है। बस घर की चौकीदार बनाकर छोड़ जाते हैं। जो यहां बैठकर उनके घर के रखवाली करती रहती हूं”
ममता जी ने कहा।
” आने दो आज भाई को। मैं ही बात करती हूं। आखिर एक घर की बहू के लिए पहले उसका घर होना चाहिए। अभी आप हो तो ये इज्जत है मेरी। कल को तो भाभी मुझे बुलाएगी ही नहीं”
पूनम ने कहा।
दिन में मानसी जब आई तो वह काफी थक चुकी थी। खाना खाकर थोड़ा बहुत काम निपटाकर वो अपने कमरे में आकर
लेट गई। और शाम को उठकर खाने की तैयारी में लग गई। इस बीच उसकी और पूनम की कोई ज्यादा बातचीत नहीं हुई।
लेकिन शाम को जब राजेश घर आया तो पूनम और ममता जी दोनों मुंह फुला कर सोफे पर बैठी हुई थी।
राजेश थका हारा तो घर आया ही था। पता नहीं ऐसा क्या कहा पूनम ने जो वो मानसी से नाराज हो गया। उसने उस
समय तो कुछ नहीं कहा। लेकिन रात को उसका मानसी से झगड़ा हो गया।
और आज फिर वही सब कुछ होने के आसार नजर आ रहे थे। खैर थोड़ी देर बाद पूनम घर आ गई। लेकिन तब तक
मानसी तैयार होकर स्कूल जाने के लिए अपने कमरे से बाहर आई। ये देखकर ममता जी ने कहा,
” बहु तुझे कहा था ना मैंने कि पूनम घर आ रही है। फिर तू कहां जा रही है”
” मम्मी जी आपको पता है ना कि स्कूल में अभी-अभी एग्जाम हुए हैं। कॉपी चेकिंग, रिजल्ट बनाना, वर्क लोड बहुत ज्यादा है। और फिर छुट्टी नहीं मिलेगी मुझे। इसलिए स्कूल जा रही हूं”
यह सुनकर पूनम बिगड़ते हुए बोली,
“भाभी आप टीचर ही तो हो। कहीं की बैरिस्टर नहीं हो जो आपको छुट्टी नहीं मिलेगी। और आपको काम ही क्या होता
है। जाकर बैठे-बैठे बच्चों को पढ़ाना ही तो होता है। फिर हर समय काम का रोना ही क्यों रोती रहती हो”
” सीधे-सीधे कहो ना कि ननद का आना अच्छा नहीं लगता। यहां खुद के रिश्ते तो संभलते नहीं है आप से और स्कूल में बच्चों को जिम्मेदार नागरिक बनाना सिखाएंगी। सीधे-सीधे मेरे मुंह पर ही कह दो कि यहां मत आया करो”
पूनम अपनी आवाज तेज करते हुए बोली।
” अगर यही सब चलता रहा तो एक दिन ये भी बोल ही दूंगी। वैसे मम्मी जी को तो बोल ही चुकी हूं। आप भी सुनना चाहती
हो तो लो आपके मुंह पर भी कह देती हूं। आपके पास तो कोई जिम्मेदारी है नहीं, लेकिन हमारे पास तो अपनी जिम्मेदारियां है। हम उनसे मुंह तो नहीं मोड सकते। सही कहा आपने कि मेरी कमाई से घर नहीं चलता, लेकिन मेरी कमाई का घर में योगदान तो है। माना कि टीचर की जॉब
है, लेकिन काम तो टीचर भी करती है। उन्हें बैठे रहने की सैलरी कोई नहीं देता। और क्या कह रही थी आप कि मुझे रिश्ते निभाना नहीं आता। पहले आप तो रिश्ते निभाने सीखिए। यहां आए दिन आकर आप हमारे घर में लड़ाई झगड़ा करवा देती हो। इससे बेहतर आप अपने सास ससुर के पास चले जाओगी तो उन्हें भी खुशी मिलेगी कि हमारी बहू
हमारे पास आ रही है। अपनी जिम्मेदारी को समझती है। भाभी छुट्टी करके आपके पास रहे। लेकिन आप अपने सास ससुर के पास भी न जाओ। वाह! कितनी दोगली मानसिकता है ”
कहकर मानसी रवाना हो गई। पीछे पूनम ने काफी हंगामा किया। लेकिन इस बार राजेश ने भी मानसी का ही साथ दिया।
राजेश को मानसी के पक्ष में बोलते देखकर ममता जी ज्यादा कुछ कह नहीं पाई। और पूनम को भी यह समझ में आ गया
कि हर रिश्ते को अपनी मर्जी से नहीं चलाया जा सकता।
(लक्ष्मी कुमावत)