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Sunday, June 15, 2025

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Story by Lakshmi Kumavat : बेटा, तुम मेरे भरण पोषण के लिए मना नहीं कर सकते?

Story by Lakshmi Kumavat – पढ़िये आज के बेटे-बहू वाले दौर में एक घर की कहानी..

* बेटा तुम मेरे भरण पोषण के लिए मना नहीं कर सकते*
” अरे वरुण बेटा, जरा दो हजार रुपए देना तो ”
मोहिनी जी अपना दुपट्टा सही करते हुए बोली।
” क्या हुआ मम्मी? कहीं जा रही हो क्या आप?”
वरुण ने पूछा।
” हां बेटा, अभी-अभी तेरी मौसी का फोन आया था। मौसा जी को हॉस्पिटल में एडमिट किया हैं।‌ उनकी तबीयत अचानक बिगड़ गई थी। वो वहां बिल्कुल अकेली है। उसने मुझे वहां बुलाया है। साथ ही कुछ जरूरी सामान लेकर आने के लिए कहा है। हालांकि सामान तो पांच सौ छह सौ रूपए का ही है। पर वहां मुझे पैसों की जरूरत पड़ गई तो। इसलिए एक्स्ट्रा पैसे मांग रही हूं। ला जल्दी से पैसे दे दे, ताकि मैं यहां से निकलूं। फिर सामान भी तो खरीदना है ”
मोहिनी जी एक ही सांस में सब कुछ बोल गई।
उनकी बात सुनकर वरुण ने अपनी पत्नी निशा की तरफ देखा।
जीविषा उसे घूर रही थी और उसने इशारे से उसे पैसे देने के लिए साफ मना कर दिया। तभी मोहिनी जी ने कहा,
” वरुण सोच क्या रहा है? जल्दी कर। वहां मौसी अकेली है। वो परेशान हो रही होगी ”
ये सुनकर वरुण थोड़ा हकलाते हुए बोला,
” मम्मी.. वो.. मम्मी.. वो मेरे पास अभी पैसे नहीं है ”
उसकी बात सुनकर मोहिनी जी हैरान होते हुए बोली,
” पैसे नहीं है? क्या मतलब? अभी कल ही तो तू एटीएम से बीस हजार रुपए निकाल कर लाया था। फिर मैंने अपनी पेंशन के पैसे भी तो तुझे कल जमा कराने के लिए दिए थे। जो मैं बैंक से लेकर आई थी जरुरी काम के लिए। जिसे तू बैंक में जमा कराना भूल गया था। वो पैसे तो होंगे ही ना तेरे पास”
इससे पहले कि वरुण कुछ कहता उसकी पत्नी जीविषा बोली,
” मम्मी जी वो बीस हजार रुपए तो हम घर के राशन, बिजली के बिल, और खर्चों के लिए लेकर आए थे। उसमें से आधे से ज्यादा पैसों का हिसाब तो कल ही हो गया ”
” हां, लेकिन पेंशन के पैसे भी तो होंगे ना ”
मोहिनी जी ने कहा तो जीविषा बोली,
” देखिए मम्मी जी, आपके खर्चे भी तो हमें ही उठाने पड़ते हैं। तो भला उन पेंशन के पैसों पर आपका क्या हक ”
ये सुनकर मोहिनी जी हैरान रह गई। फिर अचानक कुछ सोचते हुए उन्होंने वरुण की तरफ देखा और कहा,
” वरूण मेरे पेंशन के पैसे बैंक में ही जमा हो रहे हैं ना? या फिर…”
अब वरुण से कोई जवाब देते नहीं बना। वो नज़रे नीचे किए चुपचाप बैठ रहा। मोहिनी जी को समझते देर नहीं लगी कि उनके पेंशन के पैसे कोई बैंक में जमा नहीं होते। बल्कि ये लोग अपने पास ही रख लेते हैं। तभी उनके बैंक की पासबुक तक उन्होंने अपने पास रख रखे हैं। उसे यूं चुप देखकर मोहिनी जी को और गुस्सा आ गया।
और वो वरुण पर चिल्लाते हुए बोली,
” वरुण तुझसे पूछ रही हूं मैं। जवाब क्यों नहीं दे रहा है? पैसे बैंक में जमा होते है या खुद खर्च कर देते हो? ”
जब मोहिनी जी ने डांट कर पूछा तब वरुण ने कहा,
” मम्मी आपका खर्चा भी तो मैं ही उठाता हूं। तो आपके पेंशन के पैसों पर भी तो मेरा ही हक हुआ ना। और फिर पैसे घर खर्चे में ही तो काम आ रहे हैं। क्या करोगी बैंक में पैसा जमा करके। वैसे भी तो आपकी उम्र हो गई है ”
” क्या मां होने के नाते तेरी कमाई पर मेरा कोई हक नहीं है। जो मेरे खर्चे भी तू मेरे पेंशन के पैसों से ले रहा है। वो भी तब, जब तेरी कमाई अच्छी है। फिर भी तेरी नजर पेंशन के कुछ हजार रूपए पर ही गई ”
बोलते बोलते मोहिनी जी की आंखों में से आंसू आ गए।
” मम्मी जी अब आप रोना-धोना छोड़िए। हमें इमोशनल ब्लैकमेल करने की जरूरत नहीं है। वैसे भी इनकी कमाई पर इनके परिवार का हक है, आपका नहीं। अब आप हमारे साथ रहती है तो बदले में अगर कुछ पैसे रख लिए तो गलत क्या है? ”
जीविषा मोहिनी जी से बोली। और उसके बाद वरुण की तरफ पलट कर बोली,
“अब आप बैठें बैंठे देख क्या रहे हो? आपको कुछ काम नहीं है क्या? चलिए तैयार हो जाइए। मेरे मायके भी तो चलना है फिर ”
आखिर मोहिनी जी को वहीं बैठा छोड़कर थोड़ी देर बाद दोनों घर से रवाना हो गए। मोहिनी जी की आंखों में आंसू आ गए। कितना विश्वास करती थी वो अपने बेटे बहु पर। और वो दोनों उनकी पीठ पर छुरा घोप रहे थे। उनके लिए ये यकीन कर पाना मुश्किल हो रहा था।
मोहिनी जी के पति सरकारी मुलाजिम थे। वरुण जब अपनी पढ़ाई पूरी कर नौकरी की तलाश में ही था, उसी समय एक हादसे में उनके पति की मृत्यु हो गई। मोहिनी जी भी पढ़ी लिखी थी। पर खुद नौकरी करने की जगह उन्होंने वरुण को अनुकंपा नौकरी दिलवा दी। वैसे भी आज के जमाने में सरकारी नौकरी मिलना बहुत मुश्किल बात है।
साथ ही मोहिनी जी को विधवा पेंशन भी मिलती थी। घर के सारे खर्चों का बोझ वरुण ने अपने कंधों पर ले रखा था। जबकि मोहिनी जी की पेंशन के पैसों को बैंक में जमा करवा देता था।
वरुण की शिक्षा अच्छी थी और वो मेहनती भी था। ये देखकर उसके लिए रिश्ते आने लगे थे। अभी दस महीने पहले ही जीविषा के साथ उसकी शादी हुई थी। उनकी शादी के चार महीने बाद ही वरुण ने मोहिनी जी की बैंक की पास बुक अपने पास ही रख ली। ये कहकर कि बार-बार पासबुक उनसे लेनी पड़ती है।
पर मोहिनी जी ने कभी भी पासबुक नहीं मांगी। उन्हें अपने बेटे बहू दोनों पर बहुत भरोसा था। लेकिन इस भरोसे का ये अंत होगा ये उन्हें उम्मीद नहीं थी।
खैर तभी उनके मोबाइल की रिंग बजी। देखा तो उनकी बहन का फोन था। उससे बात कर मोहिनी जी पड़ोस में रहने वाली अपनी सहेली चंचल जी के यहां गई। और कुछ पैसे उधार लेकर अपनी बहन के पास हॉस्पिटल सामान लेकर पहुंची। घर की चाबी वो चंचल जी को ही दे आई थी। शाम को जब घर वापस लौटी तब तक बेटे बहू दोनों आ चुके थे। उनके घर में घुसते ही वरुण ने पूछा,
” मम्मी कहां गई थी आप? ”
” तुम्हारी मौसी के पास गई थी। उसे मेरी जरूरत थी ”
” पर पैसे तो नहीं थे आपके पास। फिर ऐसे कैसे चली गई आप ”
जीविषा ने बीच में आते हुए कहा।
” चंचल से कुछ पैसे उधार लेकर गई थी। मैं उसे पैसे लौटा दूंगी। पर उससे पहले तुम लोग मेरी पासबुक मुझे दे दो ”
मोहिनी जी ने दृढ़ होते हुए कहा।
” अरे वाह! एक तो हमसे पूछे बगैर आप चंचल आंटी से पैसे उधार लेकर चली गई, और ऊपर से पासबुक भी मांग रही हो। कुछ नहीं देने वाले हम आपको। चुपचाप पड़े रहिए घर में। आइंदा हमसे पूछे बगैर घर के बाहर कदम भी मत रखना”
जीविषा चिल्लाते हुए बोली।

ये सुनकर मोहिनी जी ने वरुण की तरफ देखा। लेकिन वरुण ने चुप रहकर इसमें अपनी सहमति जाहिर कर दी। आखिर मोहिनी जी ने निर्णय ले लिया कि अब उन्हें अपने लिए बोलना ही पड़ेगा,

” बहु तुम मेरी बहू हो, सास बनने की कोशिश मत करो। तुम कौन होती हो ये निर्णय लेने वाली कि मुझे क्या करना है और क्या नहीं। मैं अपनी पासबुक ही तो मांग रही हूं, कुछ और तो नहीं ”

” एक मिनट मम्मी जी। आप अपने छोटे-छोटे खर्चों के लिए भी हम पर निर्भर हो। हम आप पर निर्भर नहीं है। यदि आज हम आपके खर्चे करने से इनकार कर दे या आपको घर से निकाल दे तो आपके पास कोई दूसरा सहारा भी नहीं है। इसलिए जरा सोच समझ कर कदम उठाइए। हमें मजबूर मत कीजिए ” जीविषा चिढ़ते हुए बोली।

उसकी बात सुनकर मोहिनी जी मुस्कुराते हुए बोली,

” बेटा ऐसी गलती कर मत लेना। पढ़ी-लिखी तो मैं भी हूं। माना कि विश्वास ही विश्वास में मैंने पासबुक वगैरह तुम लोगों को रखने को दे दी। पर कानून अच्छे से जानती हूं। ये घर मेरा है इसलिए यहां से तुम लोग मुझे नहीं निकाल सकते। बल्कि मैं तुम्हें यहां से निकाल सकती हूं ”

ये सुनकर जीविषा कुछ बोलने को हुई तो मोहिनी जी अपना हाथ दिखाते हुए उसे चुप रहने का इशारा करते हुए उससे बोली,

” और रही बात मेरे खर्चों की। तो भारतीय कानून के हिसाब से अनुकंपा पर नौकरी लेने वाले बेटे को अपनी मां का भरण-पोषण उसके जीवनकाल तक करना होता है। यदि उसने देखभाल करने से इंकार किया तो उसे अपनी सैलरी का एक हिस्सा अपनी मां को गुजारा करने के लिए हर माह देना होगा। बेटा अपने इस दायित्व से मुंह मोड़ता है तो विभाग की ओर से सेवा से बर्खास्त करने की कार्रवाई की जा सकती है। अब ये तुम दोनों पर निर्भर करता है कि तुम लोग क्या चाहते हो ”

ये सुनकर जीविषा चुप हो गई और वरुण की तरफ देखने लगी। वरुण के माथे पर पसीने के बूंदे चमकने लगी।

ये देखकर मोहिनी जी ने कहा, ” बेटा मैं तुम्हारी मां हूं। तुम लोगों को घर से नहीं निकाल रही हूं। वरना ऐसी हरकत करने के बाद तो तुम लोगों का इस घर में रुकना बनता ही नहीं है। लेकिन हां, अब तुम पर आंख बंद कर विश्वास भी नहीं कर सकती। इसलिए मेरी पासबुक भी मुझे दे दो। अपने अकाउंट को मैं खुद हैंडल कर सकती हूं। और अगर मेरे खर्चे करने में तुम्हें ऐतराज है तो हर महीने एक फिक्स अमाउंट मुझे खर्चे के तौर पर दे दिया करो। और ये बात अच्छे से याद रखना कि मैं आज के जमाने की मां हूं। अगर अपने बच्चों पर विश्वास करना जानती हूं, तो गलती करने पर उन्हें सजा देना भी जानती हूं. ”

मोहिनी जी की बात सुनकर दोनों से कुछ कहते नहीं बना। आखिर वरुण ने मोहिनी जी की पास बुक उन्हें वापस दे दी। मोहिनी जी ने बैंक में लाॅकर लेकर घर के पेपर्स और अपने गहने उसी में रखवा दिए।

(लक्ष्मी कुमावत)

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