(Story)
ट्रेन अभी स्टेशन पर ही रुकी थी कि चार-पाँच फेरीवाले डिब्बे में चढ़ आए और आवाज़ें लगाने लगे। मोहिनी को तेज़ प्यास लगी थी। तभी उसकी नज़र एक आठ-दस साल के लड़के पर पड़ी जो पानी की बोतलें बेच रहा था। मोहिनी ने उसे बुलाया, “कितने की है बोतल?”
लड़के ने मुस्कराकर कहा, “बीस रुपये की, एकदम ठंडी।”
मोहिनी ने बोतल हाथ में लेकर देखा। बोतल सचमुच ठंडी थी, लेकिन लेबल पर नज़र पड़ते ही वह बोली, “ये तो नकली बिसलरी है! शिकायत कर दूँगी।” लड़का हँसते हुए बोला, “मैडम, यहाँ यही बिकता है। अगर असली चाहिए, तो सामने वाले स्टॉल से ले लीजिए।”
मोहिनी ने बोतल वापस कर दी और थोड़ी झुंझलाकर बोली, “तुम मेरे लिए वहाँ से असली बोतल ला सकते हो? मैं तुम्हें दस रुपये दूँगी।”
लड़का बोला, “ठीक है, लेकिन जल्दी करिए, गाड़ी चलने वाली है।”
मोहिनी जैसे ही पर्स से पैसे निकालने लगी, उसे ध्यान आया कि सारे खुले पैसे उन्होंने कूरियर वाले को दे दिए थे। उन्होंने कहा, “तीस रुपये काटकर बाकी लौटा देना।”
लड़का बोला, “खुले कहाँ से लाऊँ मैडम? सुबह की पहली ट्रेन है, अब तक सौ के भी छुट्टे नहीं हुए।”
मोहिनी को शक हुआ कि वह पांच सौ रुपये लेकर भाग सकता है, लेकिन प्यास इतनी लगी थी कि उन्होंने आखिरकार उसे नोट पकड़ा दिया। आस-पास बैठे लोग उसे अजीब नजरों से देख रहे थे। कुछ ही देर में ट्रेन ने सीटी दी और चल पड़ी।
एक सज्जन बोले, “मैडम, वो अब नहीं लौटेगा। आज का खर्चा-पानी बन गया उसका।” मोहिनी को अपनी लापरवाही पर गुस्सा आने लगा। तभी उन्होंने खुद से कहा, “अब से हमेशा पानी साथ रखूंगी।”
करीब आधे घंटे बाद वह लड़का हांफता हुआ वापस आया। उसके एक हाथ में ठंडी बोतल थी और दूसरे में चार सौ अस्सी रुपये। मोहिनी ने झुंझलाते हुए पूछा, “इतनी देर कहाँ लगा दी?”
लड़का चुपचाप बोतल बढ़ा कर बोला, “आपका कोच और सीट नंबर नहीं देखा था, पूरी ट्रेन में ढूंढता रहा। बीच में फिसल गया, इसलिए देर हो गई।”
मोहिनी ने पैसे लिए और देखा कि उसके घुटने से खून बह रहा है, पैंट भी फटी हुई थी।
“ये कैसे हुआ?” मोहिनी ने पूछा।
“गाड़ी पकड़ते हुए गिर गया था,” उसने संकोच से कहा, “लेकिन डरिए मत, कुछ नहीं हुआ।”
मोहिनी ने फौरन अपना बैग खोला, एक बैंडएड निकाली और उसका घाव साफ़ करके पट्टी की। फिर पूछा, “अब तुम वापस कैसे जाओगे?”
“अगले स्टेशन पर उतरकर दूसरी ट्रेन पकड़ लूंगा,” वह बोला। “शाम तक माँ के पास पहुंच जाऊँगा। आज डांट पड़ेगी।”
मोहिनी ने भावुक होकर पूछा, “तुम चाहते तो पैसे लेकर भाग सकते थे। क्यों लौटे?”
लड़का मुस्कराया, “माँ ने कहा है कि ग्राहक भगवान होते हैं। उनसे कभी धोखा नहीं करना चाहिए।”
मोहिनी ने कुछ पैसे उसकी मेहनत के लिए देना चाहा, लेकिन उसने एक भी रुपया लेने से इनकार कर दिया। वह हाथ हिलाता हुआ आगे बढ़ गया।
मोहिनी खिड़की से बाहर देखते हुए सोचती रही—”मैं अपनी प्यास नहीं रोक पाई, और ये बच्चा जान जोखिम में डालकर मुझे एक बोतल पानी देने आया। हम अक्सर बिना सोचे समझे किसी पर शक कर लेते हैं, लेकिन कभी-कभी सबसे बड़ी ईमानदारी वहीं मिलती है जहाँ हम least उम्मीद करते हैं।”
उसकी आंखें भर आईं। एक छोटे से बच्चे ने आज उसे जिंदगी का एक बड़ा सबक सिखा दिया।
(आब्री वेलास्कस)