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Monday, December 15, 2025

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Story by Anju Dokaniya: तुम हो ना ! (Part-1)

Story by Anju Dokaniya: उसने सिगरेट सुलगा ली और धुएँ की धुँध में उसे मोनालिसा का चेहरा धुँधलाता हुआ नज़र आता रहा. चित्रकार की दृष्टि उस बच्ची के होंठों पर आ कर ठहर गई। उसने मुस्कुरा कर कहा-“ Mysterious..Mysterious Smile..

 

तुम हो ना ! (Part-1)

“दिल को छू लेने वाला संगीत ऐसे ही थोड़ी बन जाता है , उसके लिए मोमेंट बनाने पड़ते हैं.. ऐसे..विशेष पल जो आपकी ज़िंदगी को..आपकी आत्मा को छू लेते हैं.”
मोनालिसा की आँखों में आँसू छलक आए और वह लगातार रोए जा रही थी तभी तेजस्विनी (मोनालिसा की माताजी) तेज़ी से कमरे में दाखिल हुई और लपक कर पहले टीवी का स्विच ऑफ किया और उसके बाद मोना (मोनालिसा) के पास पहुँची .

मोना..मोना , तेजस्विनी अपनी बिटिया मोना को लगातार कंधों से पकड़ कर झिंझोड़ते हुए बार-बार उसका नाम पुकार रही थी और उसके आँसू पोछ रही थी.

“ना..ना मेरी बच्ची..बस..बस कहते हुए अपने सीने से मोनालिसा को चिपका लिया और प्यार से उसका सर थपथपाने लगी .मोना तेजस्विनी से लिपटी अब भी सुबक रही थी.उसके होंठों पर बस एक ही नाम था..शोना..आमार शोना..शोना….

तेजस्विनी को याद आया कि डॉक्टर घोष ने कहा था कि ऐसी सिचुएशन जब भी हो वो तुरंत उनको कॉल करे .तेजस्विनी ने सुबकती मोना को सोफे पर कुशन का सहारा दे कर बैठाया और डॉ. घोष को फ़ोन मिलाने लगी.

“हेलो..हैं बोलुन.आमि डॉ. घोष बोलछि..”
“हैं डॉक्टर बाबू मोना कान्ना कोरछे (रो रही है).आपनि एक बार चोले आशुन ना बाड़ीते(घर).”
“आच्छा..आमि आश्च्छि,चिंता ना कोरूँन.”
तेजस्विनी ने फ़ोन रखा और मोना के पास आ कर बैठ गई.
मोना ने तेजस्विनी की गोद में सर रख दिया और कमरे की छत को निहारने लगी जैसे..कुछ याद करने की कोशिश कर रही हो..

तभी बंगले के बाहर कार रुकने की आवाज़ आई और कुछ क्षणों में डॉ.घोष हॉल में दाखिल हुए.तेजस्विनी सोफे से उठी और डॉ. घोष को नमस्कार किया.

बिना वक्त बर्बाद किये डॉ. घोष मोना के पास पहुँचे और उसकी नब्ज देखने लगे .
“हूँ..”
फिर Stethoscope निकाला और मोना के हृदय की धड़कन जांचने लगे जो बहुत तेज़ चल रही थी .
तुरंत उन्होंने अपने बैग से एक इंजेक्शन निकाला और मोनालिसा को वह इंजेक्शन उसके बांये कंधे के नीचे लगा दिया .फिर तेजस्विनी की ओर मुड़े जो सामने खड़ी अपनी बेटी मोना को कष्ट में देख कर परेशान थी .

सोच रही थी कि इतनी हँसने-खिलखिलाने वाली उनकी मोनालिसा अचानक से इतनी खामोश क्यों हो गई? उसके होठों की हँसी ग़ायब हो चुकी थी और आँखों में सिर्फ़ सवाल और आँसू रह गए थे . एक प्रतीक्षा दिखती थी उसके चेहरे पर .. किसी के आने की..बस कभी कमरे की छत या आकाश के शून्य को निहारती रहती थी.

डॉ. घोष ने तेजस्विनी को संबोधित करते हुए कहा -“ कुछ ऐसा इसने अवश्य देखा या सुना है जिससे इसके पुराने घाव ताज़ा हो गए हैं और ये restless हो गई है जो एक अच्छा sign है परंतु इसके दिमाग़ पर पहले ही इतना बुरा असर पड़ा है कि और ज़्यादा दबाव पड़ा तो ये झेल ना पाए शायद इसलिए अभी इसके माइंड को रिलैक्स करने के लिए इंजेक्शन दे दिया है. कुछ ही देर में इसे नींद आ जाएगी, Don’t worry तेजस्विनी जी .”

“जी.. डॉक्टर बाबू..”- तेजस्विनी ने कहा .
“कुछ बात हो तो मुझे मेसेज कर दीजिएगा, अभी एक ऑपरेशन में व्यस्त रहूँगा.”
“जी..जी..”
इतना कह कर डॉ.घोष घर से बाहर निकल गए .

तेजस्विनी मोना के समीप आ कर बैठ गई.मोना निद्रा के आलिंगन में डूब चुकी थी. अपनी सोती हुई मासूम बेटी के मुखड़े को तेजस्विनी लगातार निहार रही थी और सोच रही थी कि कितनी मासूम है और कितना निर्दयी भाग्य ले कर जन्मी है ये बच्ची .

यही सोचते-विचारते तेजस्विनी उसके सिरहाने बैठ गई और दीवार पर लगी मोनालिसा की फोटो निहारने लगी जिसमें वो गिटार बजा रही थी..
तेजस्विनी बीती स्मृतियों में खो गई..

“ मोना ओ मोना.. एई मेय..दिन चढ़ आया है और तू अभी तक सो रही है? कॉलेज नहीं जाना तुझे?”तेजस्विनी पूजा की धुनी घर में दिखाते हुए बोले जा रही थी जब उसकी दृष्टि हॉल में लगी बाबा आदम के जमाने की घड़ी पर पड़ी जो नौ बजे का घंटा बजा रहा था .

“उफ़्फ़ माँ..सोने दो ना थोड़ी देर.”
नींद में ही बड़बड़ाते हुए मोना ने करवट ली और कुशन से अपना चेहरा ढाँप कर दोबारा सो गई.

तेजस्विनी जानती थी कि इस लड़की को नींद से जगाना एक भारी काम था. कविता, संगीत और रंगों के संसार में मोना ऐसी मग्न रहती थी कि उसके इस कल्पनाशील लोक के बाहर भी एक ऐसा भू-मंडल है जहाँ व्यक्ति दो-जून की रोटी के उपार्जन में एड़ी-छोटी का ज़ोर लगाता रहता है..जहाँ ज़िम्मेदारियों के बोझ तले इंसान इतना दबा-चिथ जाता है कि उठ कर कमर सीधा करने का भी समय नहीं उसे . जीवन की इस वास्तविकता से वो बिलकुल अनभिज्ञ थी. पैसा कमाना कितना कठिन है ये स्पर्शज्ञान उसे अब तक नहीं था.

बड़े ही लाड-प्यार से पली मोनालिसा घर में सबकी दुलारी और अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी. कठिन व्रत और पूजा के पश्चात ईश कृपा से मोनालिसा का जन्म आश्विन मास की महालया के दिन सवेरे चार बजे हुआ.तेजस्विनी और प्रसून (मोनालिसा के पिता) के लिए ये बहुत ही सुखद क्षण था . प्रसून ने उसे जब पहली बार गोद में लिया तो उसके मुँह से निकला-“ आमार दुर्गा माँ”

बस घर में सब उसे माँ दुर्गा का आशीर्वाद समझने लगे .मोनालिसा अनुपम सौंदर्य की स्वामिनी थी . बड़ी-बड़ी तीखी कजरारी आँखें और एक अनोखी आभा से दीप्त मुख जिसके आकर्षण में व्यक्ति स्वयं बँधा चला जाता है.काले-घुंघराले लंबे केश और मधुर संगीत की तरह खनखनाती उसकी आवाज़ घर के कोने-कोने को पवित्र ध्वनि से गुंजायमान करती रहती थी.

मोना का नाम मोनालिसा कैसे पड़ा इसके पीछे एक कहानी है जैसा कि शरद नवरात्रि में मोना का जन्म हुआ था तो तेजस्विनी उसका नाम माँ दुर्गा के नाम पर रखना चाहती थी . कई दिनों तक इस पर विचार-विमर्श चलता रहा परंतु नाम तय नहीं हो पाया.

पलक झपकते ही तीन वर्ष बीत गए. अब तक बिटिया का नाम ना रखे जाने के कारण घर पर और परिचय वाले लोग उसे दुर्गा कह कर बुलाते थे.

कोलकाता में एक नामी चित्रकार हुआ करता था . उससे पेंटिंग बनवाने के लिए महीनों पहले बुकिंग करवानी पड़ती थी. प्रसून बाबू कला के पुजारी थे और उन्होंने अपनी बिटिया की एक तस्वीर उस चित्रकार से बनवाने के लिए महीनों पहले बुकिंग करवायी .

नियत दिन पर प्रसून और तेजस्विनी अपनी बिटिया को ले कर उस चित्रकार के स्टूडियो पहुंचे. उनकी बिटिया काफ़ी छोटी थी और बच्चे प्रायः अजनबियों से जल्दी घुलते-मिलते नहीं इसलिए उस चित्रकार ने पहले उससे खूब बातें की और उसके मिजाज़ को भी समझा.

फिर कुछ देर बाद जब बच्ची उसके साथ थोड़ी घुल-मिल गई तब उसने उसे एक नक्काशीदार सुंदर सोफे पर बैठा कर उसकी तस्वीर बनानी शुरू की जब तक वह उसकी तस्वीर बनाता रहा बस लगातार इस बात से परेशान रहा कि बच्ची के चेहरे पर मुस्कान कैसे चित्रित करे . उसने कई बार प्रयास किया मगर उस बच्ची के चेहरे के भाव क्षण-क्षण में बदल रहे थे जिससे चित्रकार असमंजस में पड़ गया.

अंततः चित्रकार ने उसके चेहरे पर रहस्यमयी मुस्कान रखी और उसके मुँह से निकला -“मोनालिसा..”
ये नाम सुनते ही बच्ची ज़ोर-ज़ोर से खिलखिलाने लगी. चित्रकार हतप्रभ था और बच्ची के माता-पिता भी क्यूँकि सब लगातार उसके होठों पर मुस्कुराहट लाने के लिए कोशिशें कर रहे थे परंतु बच्ची ने उनको निराश किया लेकिन “मोनालिसा” नाम सुनते ही बच्ची मुस्कुराने लगी .

तब प्रसून बाबू ने ये तय किया कि आज से इसका नाम मोनालिसा ही होगा . तेजस्विनी को भी यह नाम पसंद आया . वे लोग अपनी बिटिया को ले कर घर चले गए मगर वह चित्रकार काफ़ी देर तक उस बच्ची की पेंटिंग को निहारता रहा. उसने सिगरेट सुलगा ली और धुएँ के धुँध में मोनालिसा का चेहरा धुँधलाता हुआ नज़र आता रहा . चित्रकार की दृष्टि उस बच्ची के होंठों पर आ कर ठहर गई और वह मुस्कुरा कर बुदबुदाने लगा-“ Mysterious..Mysterious Smile..Mysterious Beautiful Smile.. Monalisa.”

इधर मोनालिसा चाँद की सोलह कलाओं की भांति प्रतिदिन संवरने, निखरने और बढ़ने लगी. तीक्ष्ण बुद्धि और मृदुभाषी, मेधावी छात्रा होने के साथ-साथ अधिकतर सभी कलाओं में दक्ष थी. चित्रकारी-नृत्य और गायन में विशेष अभिरुचि थी मोनालिसा की जो भी उसे एक बार देख लेता था बस मंत्रमुग्ध हो जाता था और उसके गुणों को जानने के पश्चात तो उसके मोहपाश से छूटना और भी दुष्कर था इसलिए कॉलेज में उसकी सखियाँ उसे “Nekka”कहकर बुलाया करती थी जिसका अर्थ है “ सुंदरता में सबसे उत्तम.”

(क्रमशः)

 

 

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