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Tuesday, June 17, 2025

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Story by Anju Dokania: वो रहस्यमयी लड़की

Story by Anju Dokania: मौसमी घबरा कर पीछे हट गई और लगातार अपलक मंदिरा को देखती रही फटी आँखों से. उसकी आँखें और भी आश्चर्य से फैल गई जब मंदिरा ने..
मन्दिरा आज फिर देर से आई. मौसमी ने देख लिया मगर उसने अनदेखा किया और अपना काम करने लगी. मंदिरा ने दरवाज़े पर दस्तक दी. आवाज़ लगाई.. “भाभी..भाभी प्लीज़ दरवाज़ा खोल दीजिए ना “.

मौसमी को खूब जोर ग़ुस्सा आ रहा था मगर सहज होने का  अभिनय करते हुए तेज़ी से आ कर दरवाज़े की चिटकनी खोल दी बिना मंदिरा की तरफ़ देखे और वापस लौट गई पीठ घुमा कर रसोई-घर का रूख करते हुए.

मन्दिरा गोल-गोल आँखों से देखती रही मौसमी को . मौसमी गैस के आगे खड़ी चाय बना रही थी सोमेन के लिए जो अभी सोया हुआ था कमरे में . रोज़ मौसमी चाय बना कर जब गर्म पानी के साथ कमरे में जाती तब वही उठाती थी सोमेन को.

चाय में उबाल आते ही जैसे मौसमी की तन्द्रा टूटी और उसने मंदिरा की तरफ़ बिना देखे कहा-“ मन्दिर जा तू पहले हॉल में सफ़ाई कर ले तब तक मैं तेरे दादा को चाय दे आती हूँ.”

“जी .. भाभी..”

मौसमी अब भी मंदिरा की तरफ़ बिना देखे चाय और बिस्किट रख कर ट्रे में गर्म पानी का ग्लास साथ रख कर तेज़ी से कमरे की तरफ़ बढ़ गई .

मंदिरा ने मौसमी को जाते हुए देखा और मन ही मन सोच रही थी कि-“ ये आज भाभी को क्या हो गया है? कहीं मूड तो ख़राब नहीं ..”

मौसमी ने सोमेन को उठाते हुए कमरे के परदे खोल दिए. सूरज की नर्म धूप कमरे में सीधे बिस्तर पर ठीक सोमेन के पैरों के पास पड़ रही थी जैसे नए दिन का स्वागत कर रही हो. सोमेन ने मुस्कुरा कर मौसमी को देखा.

“गुड मॉर्निंग मुशु “- सोमेन ने कहा

“राधे-राधे सोमू “-मौसमी ने कहा

और कमरे से बांसी कपड़े इकट्ठे करने लगी धुलवाने के लिए. ये रोज़ की दिनचर्या थी मौसमी की.

“यति का फ़ोन आया मुशु?”- सोमेन ने पूछा .

“नहीं.. मैंने उसे कॉल किया था लेकिन उसका फ़ोन उठा नहीं .”

“ हूँ.. शायद व्यस्त होगा .” सोमेन ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा .

“हाँ .. “

कहते हुए ख़ाली कप ले कर मौसमी कमरे से बाहर निकल गई . सोमेन भी मोबाइल पर न्यूज़ सुनने लगा .

मौसमी रसोई में पहुँची. कप को सिंक में रखा और जैसे ही मुड़ी मंदीरा सामने थी.

“ भाभी.. क्या हुआ , आपकी तबियत ठीक नहीं क्या?”

“ना ठीक है एकदम”-मौसमी ने कहा.

“लेकिन आपका चेहरा इतना उतरा हुआ क्यों है?भैया ने कुछ कहा है क्या आपको?”

“नहीं.. उन्होंने कुछ नहीं कहा.. तू.. तू ये सब छोड़ और तेरी चाय रखी है पी ले और फिर नाश्ते के लिए सब्ज़ियाँ काट दे.”

“जी भाभी..” मंदिरा ने मौसमी की ओर देखते हुए चाय का ग्लास उठा लिया.

चाय पीते-पीते वो मौसमी को देखे जा  रही थी .वो जानती थी कि मौसमी किसी ना किसी बात से ज़रूर अपसेट है .

मंदिरा ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा-“सॉरी भाभी मैं कल काम पर नहीं आ पाई. आप तो जानती हैं ना कि अभी मेरे साथ जो हो रहा है वो बिल्कुल मेरी समझ से परे है.

मौसमी सोमेन के लिए नाश्ता बना रही थी.उसने मंदिरा की ओर देखा और फिर नाश्ता बनाने में व्यस्त हो गई.मौसमी का ये रिएक्शन देख कर मंदिरा चुपचाप चाय का गिलास हाथों के पास ला कर चाय सुडकने लगी परंतु उसकी नज़रें मौसमी को ही देख रही थी.

मौसमी को भी मंदिरा से यूँ कम बातें करना ठीक नहीं लग रहा था मगर इन दिनों मंदिरा ने हद ही कर दी थी . आए दिन छुट्टियाँ मारने लगी थी. मौसमी के पैरों में इन दिनों काफ़ी दर्द रहने लगा था यूरिक एसिड की वजह से .कभी-कभी तो पैरों की एड़ियों में इतनी अधिक ऐंठन होती कि वह ठीक से चल भी नहीं पाती थी .

सोमेन ऑफिस जाने के लिए तैयार हो रहा था . मौसमी ने झाँक कर देखा तो जल्दी-जल्दी नाश्ता प्लेट में लगाने लगी .मन्दिरा ने कहा -“भाभी मैं जल्दी से watermelon का जूस निकाल देती हूँ और पपीता काट देती हूँ.

मौसमी ने उसकी बात सुनकर बस ‘हूं..’ कह दिया और फिर से अपने काम में व्यस्त हो गई.

सोमेन ड्राइंग-रूम में आया और सोफे पर बैठ कर नाश्ता करने लगा . जब तक सोमेन नाश्ता करके ऑफिस के लिए रवाना नहीं हो जाता था तब तक मौसमी घर के किसी और काम को नहीं छेड़ती थी . सोमेन की एक आदत है , अब कभी वो अच्छी तो कभी मौसमी के लिए परेशानी की वजह बन जाती थी . सोमेन बहुत अनुशासन पसंद है . उसे काम में जरा-सी भी ढील बर्दाश्त नहीं होती. यदि किसी भी काम में देर हो जाए या उसे अपना समान बिल्कुल सही स्थान पर ना मिले तो वह हाइपर हो जाता था.

घर में मौसमी और मंदिरा दोनों ही इस बात से भली-भांति परिचित थे .ज्ञानेंद्र का कॉल आया सोमेन के फ़ोन पर .सोमेन ने इशारे से मौसमी को कॉल उठाने के लिए कहा.

मौसमी ने मोबाइल उठाया

“हेलो ..”

उधर से आवाज़ आई -“हेलो.. मैम..गुड मॉर्निंग !.मैं आ गया घर के बाहर गाड़ी निकाल कर .”

“गुड मॉर्निंग..ठीक है तुम बैठो सर कुछ देर में आते हैं.”

सोमेन नाश्ता ख़त्म कर चुका था.कोट पहनते हुए कहा

“मुशु  मेरी त्रिशूली कांट्रैक्ट की फाइल लाना तो.. cubboard में रखी है सामने और हाँ वो पेन ड्राइव भी निकाल देना ब्लैक वाला जो तुमको दिया था.”

मौसमी ने सुन कर हाँ तो कह दिया और पलट कर कमरे की ओर जाने लगी ये सोचते हुए कि “ कब दी थी पेन ड्राइव?. मुझे तो याद ही नहीं आ रहा.”यही सोचते हुए वो अलमारी के पास पहुँची और कांट्रैक्ट की फाइल जो सामने  ही रखी थी निकाली फिर वो सोचने लगी कि पेन ड्राइव कहाँ होगी ? अभी सोमेन से कहूँगी तो ग़ुस्सा होंगें कि मुझे इतनी-सी बात याद नहीं रहती .

वह पैन ड्राइव टटोलने लगी . ढूँढते-ढूँढते उसका हाथ एक छोटे-से बॉक्स से टकराया जिसमें वह कभी-कभी बचे हुए चिल्लड़ coin डाल दिया करती थी. उसे खोला तो पैन ड्राइव दिख गया. मौसमी ने चैन की सांस ली और तेज कदमों से चलते हुए ड्राइंग-रूम में पहुँची .सोमेन को फाइल और पेन ड्राइव दिया और सोमेन ने कहा -“थैंक यू मुशु..”

कहते हुए मौसमी को एक हग दिया और निकल पड़ा ऑफिस के लिए.

मौसमी सोमेन को जाते देखती रही जब तक सोमेन आँखों से ओझल ना हो गया. मौसमी जैसे ही फाटक बंद करके मुड़ी मंदिरा बिलकुल उसके सामने खड़ी थी.

मंदिरा ने कहा-“भाभी मैं जानती हूँ कि आप मुझसे नाराज़ हैं परंतु आप कुछ कहती नहीं हैं .”

“अरे ऐसा कुछ नहीं मंदिरा. बेकार की बातें सोचती है तू.. तू जा कर अपना काम निपटा वरना तुझे ही देर हो जाएगी. “

“नहीं भाभी मैं ख़ुद थक चुकी हूँ इन सब से जो कुछ अभी मेरे  जीवन में घट रहा है. पूरी रात मैं सो नहीं पाती.

कभी भूतों का शोर , कभी चुड़ैलों की चीख .. “

मौसमी ये सब सुन कर चुप थी.मंदिरा ने आगे कहा -“ मैं जानती हूँ भाभी कि आप मेरी बातों पर चाह कर भी विश्वास नहीं कर पा रही परंतु ये सब सत्य है . बचपन से ही भीतर किसी अदृश्य शक्ति का आभास होता रहा है मुझे. अब मृत आत्माएँ भी दिखने लगी है मुझे .. बातें भी करती हैं मुझसे.”

मौसमी ये सब सुन कर स्तब्ध रह गई और घूरने लगी मंदिरा को.”ये कैसे संभव है ? ऐसा नहीं हो सकता. तू पगला गई है क्या?”

“नहीं भाभी.. मैं बिलकुल ठीक हूँ और जो भी कह रही हूँ पूरे होशो-हवास में कह रही हूँ. मुझे मृत आत्मायें अपना दुख-दर्द सुनाती हैं. मुझसे कहती हैं कि मुझे मुक्ति दिलाओ.. मैं कुएँ में फँसा हूँ .. मुझे बाहर निकालो.. दूसरी आत्मा कहती है मुझे तुम्हारी देह में प्रवेश करके अपना बदला लेना है जिसने मेरी हत्या कर दी थी .”

मौसमी का मुँह खुला का खुला रह गया था ये सब सुन कर. ऐसा उसने सिर्फ़ फ़िल्मों में देखा था. उसे लग रहा था कि लगता है मंदिरा आजकल हॉरर फिल्में अधिक देख रही है.

वो ऐसा अभी सोच ही रही थी कि मंदिरा अचानक बोल पड़ी -“ भाभी मैं भूतों की फिल्में नहीं देखती .. विश्वास कीजिए मेरे साथ ये सब घट रहा है.”

जो वो मन ही मन सोच रही थी वही बात मंदिरा के मुँह से सुनकर मौसमी चौंक गई! सोच रही थी कि मंदिरा को उसके हृदय में चलने वाले भावों के विषय में कैसे ज्ञात हुआ .

मौसमी कुछ समझ नहीं पा रही थी कि मंदिरा के इन अजीबो-ग़रीब अनुभवों पर वो अपनी क्या प्रतिक्रिया दे.

मंदिरा आगे कहने लगी -“भाभी मैं जानती हूँ पूरा संसार मुझे झूठा समझे परंतु आप नहीं समझेंगी. आप मेरे संघर्ष में मेरा मनोबल बनकर सदैव साथ रही हैं . पति के हम तीनों  (मंदिरा और उसके दो बच्चे) को अकेला छोड़ कर जाने के बाद एक बार फी उसने पलट कर नहीं देखा हमें कि हिम जी रहे हैं या मार रहे हैं . वो आप ही थीं जिन्होंने हमें संभाला. कोरोना के उस दौर में वह आप ही थीं जिन्होंने मुझे पूरी सैलरी दी और मेरे बच्चों के मुँह में अन्न का निवाला डाला अपने घर से टिफिन पैक कर-करके दिए .

मौसमी ने उसे बीच में ही टोक दिया, कहा-“ अरे छोड़ ना उन सब पुरानी बातों को. तू भी तो इस घर की अब सदस्य ही है तो तुझे अकेला कहाँ छोड़ देती?”

मंदिरा की आँखें भर आई. मौसमी ने देखा तो उसके हृदय में ममता उमड़ आई और वो मंदिरा के आँसू पोंछने के लिए आगे बढ़ी अपनी सारी नाराज़गी भूल कर . वो जैसे ही मंदिरा के निकट पहुँची वैसे ही चौंक गई.मंदिरा अचानक ही थर-थर काँपने लगी थी . उसका चेहरा पिला पड़ गया था और उसके माथे की नसें तन गईं थीं. वो झटके से ज़मीन पर बैठ गई और आँखें बंद कर लीं. मौसमी घबरा कर पीछे हट गई और लगातार अपलक मंदिरा को देखती रही फटी आँखों से. उसकी आँखें और भी आश्चर्य से फैल गई जब मंदिरा ने अपनी जीभ बाहर निकाली और सर्प की तरह उसकी जिह्वा बलखाने लगी.

मौसमी हाथ जोड़ कर ॐ नमः शिवाय का जाप करने लगी और इधर मंदिरा की देह में कंपन इतनी तेज़ी से होने लगा कि कोई सामान्य मानव इस प्रकार अपने शरीर को कंपित नहीं कर सकता.

मौसमी साहस बटोर कर मंदिरा के नज़दीक आई और ॐ नमः शिवाय कह कर शीश झुकाया. मंदिरा की आँखें बंद थीं मगर उसका हाथ अपने आप मौसमी के सर पर पड़ा .तत्पश्चात मौसमी झटके से उठी और ग्लास में पानी ले कर मंदिरा पर जल का छिड़काव किया. उससे मन्दिरा का कष्ट देखा नहीं जा रहा था. वो बहुत छटपटा रही थी.. जल देह पर पड़ते ही मंदिरा की तनु हुई देह शिथिल पड़ने लगी और मंदिरा के चेहरे के भाव बदलने लगे. देख कर लग रहा था कि उसे पूरी देह में कुछ असहनीय कष्ट हो रहा है. कुछ क्षणों में वो शांत हो गई और उसने आँखें खोली.

मौसमी दौड़ कर उसके पास है और कहा कि -“ मंदिरा… मंदिरा.. तू.. तू ठीक है ना? बोल..बोल ना कुछ.. तू कुछ बोलती क्यों नहीं?”

मंदिरा शांत हो गई थी और मौसमी की ओर ऐसे देखा जैसे प्रश्न कर रही हो की-“भाभी आप क्या बोल रही हैं?मैं तो बिलकुल ठीक हूँ.”

मौसमी ने फिर कहा-“ मंदिरा.. मंदिरा अब कैसा लग रहा है तुझे?”

मंदिरा ने कुर्सी का सहारा लिया और झटके से उठ खड़ी हुई.वो काफ़ी कमजोर और थकी हुई दिख रही थी जैसे कितने मीलों पैदल चल कर आई हो.उसने कहा-“ भाभी मैं बिलकुल ठीक हूँ. आप ऐसा क्यों पूछ रही हैं?”

मौसमी समझ गई कि अभी-अभी जो भी घटा वो मंदिरा को बिलकुल भी याद नहीं है. मौसमी ने उसे सब कुछ विस्तार से बताया. सुन कर मंदिरा ने कहा -“ भाभी आपने जो कहा ,ऐसा मेरे घर के लोग भी मुझे बताते हैं लेकिन मुझे कोई होश नहीं रहता उस समय. मैं जानती हूँ कि मेरी बस्तों पर किसी को विश्वास नहीं होता परंतु मेरे भीतर भोलेनाथ का सुरूर आता है और तब मेरी हालत ऐसी ही हो जाती है जो अभी आपने देखी.”

मंदिरा चुप थी और मौसमी भी. उसे कुछ सूझ नहीं रहा था कि उससे क्या कहे. तभी मंदिरा ने चुप्पी तोड़ी और कहा -“ भाभी इन दिनों मुझमें बहुत-से परिवर्तन आए हैं.. जैसे मैं हर दिन स्नान करने लगी हूँ.ना करूँ तो पूरी देह में खुजली होने लगती है जो नहाने के पश्चात ही बंद होती है.मैंने अंडा तक खाना बंद कर दिया है , सोचने पर ही उबकाई आने लगती है. कोई मुझे जूठा भोजन परोसता है तो मेरी तबीयत ख़राब हो जाती है और ज्ञात हो जाता है कि ये अब जूठा है.मैं जिस मंदिर में जाती हूँ वहाँ की मुख्य शांति दीदी जो मंदिर की सेवा और रख-रखाव करतीं हैं , उन्होंने मुझे कहा है कि मुझे अब जूठे बर्तन और कपड़े धोना बंद करना चाहिए लेकिन भाभी मैं यह सब छोड़ दूँगी तो में अपने बच्चों का पालन-पोषण कैसे करूँगी? कहाँ से आयेंगे पैसे? और ये कार्य करती हूँ तो मेरी तबीयत ख़राब होती रहती है.मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा भाभी.क्या आप मेरा मार्ग-दर्शन करेंगी?”

मौसमी सोच में पड़ गई कि वो मंदिरा को क्या उत्तर दे?

कुछ क्षण पश्चात उसने मंदिरा को कहा कि-“ देख मन्दिरा मुझे ये लगता है कि तुझे अभी बाबा के समक्ष मन ही मन हाथ जोड़ कर ये विनती कर लेनी चाहिए कि अभी तेरे बच्चे बहुत छोटे हैं तो जब वह घोड़े समझदार हो जाएँ तू तब ये कार्य छोड़ देगी और तब तक तुझे वे अनुमति दे दें इस कार्य को करने की.”

मंदिरा सब सुन कर बोली “ हाँ भाभी यही ठीक रहेगा.. परंतु मैं अब ये सब कार्य करती हूँ तो मेरे हाथ जड़ हो जाते हैं जैसे कोई मुझे रोक रहा है. बहुत मुश्किल से मैं कार्य करती हूँ आज कल भाभी. एक आपके इतर मेरी बातों पर कोई विश्वास नहीं करेगा .ये मैं जानती हूँ. मेरे हर वक्त छुट्टी करने से आपको और बाक़ी दूसरे लोगों को भी कष्ट हो रहा है . क्या करूँ.. कुछ समझ नहीं आ रहा.”

मौसमी मंदिरा के कष्ट को देख कर भावुक हो गई. उसने कहा” देख मंदिरा में सदैव तुम्हारे साथ हूँ. मैं जानती हूँ कि तुम झूठ नहीं बोल रही. मेरी चिंता मत कर मैं तुझे ग़लत नहीं समझूँगी अब जान आज सब कुछ अपनी आँखों से देख लिया है.मैं इन सबके विषय में कुछ ख़ास नहीं जानती  क्यूँकि ये सब दूसरी ही दुनिया की बातें हैं . इसलिए कुछ भी कहना सही नहीं होगा. मैं तेरे साथ हूँ. मुझे विश्वास है कि तुम्हारे पति के हमलोगों को छोड़ कर जाने के बाद जब तुमने अपने परिवार की बुद्धिमानी और हिम्मत से संभाल लिया तो उस परिस्थिति से भी तुम निपट लोगो. भोलेबाबा का तुम्हारे सर पर हाथ है और वह तुम्हारी रक्षा अवश्य करेंगें.”

मौसमी की बातें सुनकर मंदिरा की आँखों में ख़ुशी के आँसू छलक आए वह मौसमी के गले लग कर रोने लगी.

मौसमी के हाथ स्वतः ही ऊपर उठ गए और वह उसका प्यार से सर सहलाने लगी और सोच रही थी कि इस दुनिया के ऊपर भी एक ऐसी दुनिया है जो रहस्यमयी है परंतु सत्य है. सामान्य लोग इस पर विश्वास नहीं कर पाते परंतु ये एक ऐसा सत्य है जिस पर आज भी वैज्ञानिक रिसर्च कर रहे हैं.

मौसमी को मंदिरा पर अब पूर्ण विश्वास था और उसने मंदिरा का पूरा-पूरा साथ देने का निर्णय ले लिया था.

(अंजू डोकानिय)

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