Rupam Kumari जीवन पर विजेता हैं..कल्पना भी नहीं कर सकते हम इस जीवन को जिस जीवन को जीत लिया है रूपम ने अपने हौसले से..
हौसला हो तो कोई काम मुश्किल नहीं होता। पूर्णिया जिले के बनमनखी प्रखंड अंतर्गत पुरनदाहा की रहने वाली रूपम कुमारी इसी बात को सार्थक कर रही हैं। बचपन से रूपम के दोनों हाथ नहीं हैं। इसके बावजूद उन्होंने घर बैठकर किसी पर निर्भर रहने के बजाय, पढ़ाई करने का फैसला किया और पैर से लिखना सीखा।
आज रूपम कुमारी भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय से पीएचडी कर रही हैं। वह बताती हैं कि बचपन से ही उनका जीवन बेहद गरीबी में गुज़रा है। माता-पिता के पास इतने पैसे नहीं थे कि वे बेटी को पढ़ा पाएं; ऐसे में उन्होंने बेसिक शिक्षा के बाद खुद बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर अपनी पढ़ाई जारी रखी।
उनको मालूम था कि आगे बढ़ने और अपनी पहचान बनाने का सिर्फ एक ही रास्ता है। ग्रेजुएशन करने के बाद रूपम ने NET भी क्लियर किया। और आज PhD कर रही हैं। जन्म से ही हाथ नहीं होने के कारण, घर का काम हो, पढ़ाई या बच्चों को पढ़ाना, वह सब कुछ पैरों से करती हैं।
क्लास में, या परीक्षा सेंटर में बाकी बच्चे और शिक्षक उन्हें देखकर हैरान होते हैं, लेकिन फिर उनकी कहानी सुनकर मोटिवेट हो जाते हैं। रूपम की शादी हो चुकी है और उनकी एक छोटी बच्ची भी है। अपनी पढ़ाई, घर, बच्ची के साथ-साथ वह रोजीरोटी के लिए आज भी बच्चों को अपने कच्चे मकान में कोचिंग पढ़ाती हैं।
कई मुश्किलों को हरा चुकीं और अभी भी कई बाधाओं को झेल रही रूपम कभी निराशा को खुद पर हावी नहीं होने देती। आत्मविश्वास और जज़्बे का दूसरा नाम हैं रूपम।
(अज्ञात वीरा)