‘वनमाली’ के फरवरी अंक में एक बड़ी सुन्दर कथा आई है, हमारी चिर परिचित लेखिका
Lucky Rajeev दी की ‘शरबत’…ये कहानी है शांता की, उसकी बिटिया छकुली की और मन में उमड़ते भावनाओं के ज्वार की। शांता एक घरेलू सहायिका है, हाशिए पर टंगे तबके की एक महिला जो कि कहानी की नायिका है।
एक भावना प्रधान कहानी है जो ठेठ मराठी परिदृश्य पर बुनी गई है और इसलिए मराठी शब्दों का उपयोग भी है लेकिन वह कहानी के प्रवाह को कहीं भी बाधित नहीं करते। लेखिका की भावनाओं पर गहरी पकड़ है और अंत तक रोचकता बनाए रखी है लेकिन अंतिम पृष्ठ पढ़ते पढ़ते आप रो पड़ते हैं।
सधी हुई लेखनी और कसी हुई भाषा है जो कि लकी राजीव दी की सिग्नेचर शैली है। कोई शब्द फालतू नहीं लगता। इससे अधिक कहकर कहानी का रोमांच खत्म नहीं करूंगी। अंत में यही कहूंगी कि शरबत कहानी है अमृत से भरे उस हृदयघट की जो जीवन के झंझावातों से जूझकर भी कभी नहीं रीतता! आप भी अवश्य पढ़ें और आनन्द लें।