Pradeepti Sharma की लेखनी एक संक्षिप्त विचार यात्रा पर लिये चलती है आपको रूहानियत और संगीत के साथ..
कितनी ही किताबें पढ़ लो, कितने ही रास्ते तय कर लो, कितना ही धन अर्जित कर लो, कितनी ही सफलतायें पा लो, अगर अच्छे इंसान नहीं बन पाए, तो सब व्यर्थ है |
किसीके प्यार की कद्र कर लो, किसी की दरख़्वास्त को स्वीकार कर लो |
खुद के लिए तो सब जीते हैं, कभी औरों के लिए भी जीके देखो | समय सबसे बलवान है, सब नष्ट हो जाता है, इंसान का भी वजूद नहीं रहता |
जो आज दिख रहा, है वो कल नहीं होगा |
किसको क्या दिखाने में लगे हो, कहाँ भाग भागकर विचलित से फिरते रहते हो | एक ठहराव लेकर आओ भीतर, एक साँस की कीमत समझो, महसूस करो हर एक पल को | अगर कोई उन्हें ख़ुशनुमा बनाये, ख़ुशक़िस्मत समझो खुदको | वरना दुनिया तो दर्द पहुँचाने में माहिर है | ज़्यादातर लोग संकुचित नज़रिए से जीते हैं, छोटी इच्छाओं के सामने, सच्ची ख़ुशी को खो देते हैं |
बनो तो ऐसे इंसान बनो, जो इबादत का सौदा नहीं करता हो |खुदा का करम उसी पर होता है, जो निःस्वार्थ देता है सदा |हर वक़्त ये मन्नतें क्यों माँगते हो, खुद पे विश्वास कम है शायद तुम्हें?
किसी के चेहरे पर मुस्कान लाके देखो, खुदा खुद-ब-खुद रेहम करेगा |
सारे कसीदे पढ़लो, मगर दूसरे इंसान की कद्र ना करो- झूठ, फरेब, स्वार्थ, क्लेश से भरी दुनिया करने वालो, व्यर्थ है ऐसा ज्ञान |
जो इंसान को इंसान नहीं समझता, सामान सा इस्तेमाल करता है, उसका बेशकीमती जीवन यूँही गुज़र जाता है – तेरे मेरे की रंज में |
मगर एक तरीका है, दिल से दिल को जोड़ने का, नज़रों जो ना समझ पाए, वो रूह देख लेती है,
और भाषा जो ना व्यक्त कर पाए,
वो संगीत कर देता है,
इसे ही रूहानियत कहते हैं |
(प्रदीप्ति)