बाबर काबूल के रास्ते अपनी बेगम के साथ भाग रहा था, तभी उसे एक बेटी हुई, जिसे वह वहीं फेंक कर आने लगा, लेकिन किसी राहगीर ने रोका। वह बेटी गुलबदन बेगम थी, जिसने आगे चलकर हुमायूंनामा लिखा था। उसकी शादी मुगलों के एक पाँच हजारी मनसबदार से हुई थी। इसके बाद हुमायूं की बेटियों की भी शादियाँ हुई। लेकिन उसके बाद दौर आया कथित महान मुगल शासक अकबर का, जो पारस्परिक सौहार्द बढ़ाने के नाम पर केवल दूसरों की बेटियों, बहनों से हरम भरता था, अपने महलों में मीना बाजार लगवाता था, जिसमें अपहृत हिन्दू महिलाएं सामानों की तरह बेची खरीदी जाती थीं, लेकिन अपनी बेटियों की शादियों पर रोक लगा दिया था।
कहते हैं कि अजमेर में ब्याही सौतेली बहन के पति ने सत्ता में हिस्से के लिए अकबर पर हमला कर दिया था, इससे डरकर उसने बेटियों की शादी पर ही रोक लगा दिया। उसके बाद जहांगीर, शाहजहां, औरंगजेब आदि सबने यह प्रथा कायम ही रखी। नतीजा, शहजादियों के अफेयर होते, जिसका पता चलता तो उनके प्रेमियों को मरवा दिया जाता।
शाहजहां के समय में उसका अपनी ही बेटी जहाँ आरा से नाम जोड़ा जाता था और दरबारियों की जुबान से लेकर बाप बेटी के बीच के ऐसे संबंधों के चर्चे उनके दरबार में आने वाले एक अंग्रेज लेखक की किताब में भी है। हालांकि शाहजहां ने मुमताज की मृत्यु के बाद उसकी बहन से भी निकाह किया था, तब भी कुछ लेखकों और इतिहासकारों का मानना है कि शाहजहां का अपनी बड़ी बेटी के साथ अस्वाभाविक और अनुचित संबंध था। जहाँआरा के कुछ और भी प्रेमी थे, जो उससे छिपकर मिलते थे।
जहाँआरा से जलन के चलते उसकी छोटी बहन रौशन आरा ने दारा शिकोह के विरुद्ध औरंगजेब का साथ दिया। औरंगजेब ने दाराशिकोह को मारने के बाद उसे कुछ समय के लिए पादशाह बेगम भी बनवाया और फिर आखिर उसकी भी हत्या करवा दी। गौहर आरा के सामने उसके प्रेमी और दरबारी संगीतकार की हत्या करवा दी गई थी। ये तीनों बहनें शायरा भी थी।
औरंगजेब की सबसे बड़ी बेटी जेबुन्निसा यूँ तो औरंगजेब को बहुत प्यारी थी और औरंगजेब ने उसकी शिक्षा दीक्षा का भी अच्छा इंतजाम किया था, लेकिन जिस दारा शिकोह के बेटे सुलेमान से उसकी शादी तय की गई थी, उस दारा शिकोह की हत्या के बाद उसके बेटे और अपनी बेटी के मंगेतर सुलेमान की उसने सलीमाबाद के किले में जेबुन्निसा के सामने ही हत्या करवा दी थी, इसलिए जेबुन्निसा मन ही मन बागी हो गई थी।
सुलेमान की मौत के बाद उसने एक बार अपने पिता के दरबार में राजा छत्रसाल को देखा और उनके वीरता की कहानियों से प्रभावित होकर उन्हें अपनी दासी के माध्यम से प्रेम संदेश भिजवाया, लेकिन वह पकड़ी गई और फिर औरंगजेब की धमकी के डर से शांत रही। इसी तरह दूसरी बार उसने अपने पिता के ही दरबार में महाराज शिवाजी को देखा।
उनके पराक्रम की कहानियों से वह शुरू से ही प्रभावित थी। उसने उन्हें प्रेम संदेश भिजवाया, मगर शिवाजी ने उसे मना कर दिया।कुछ इतिहासकारों का यह भी मानना है कि शिवाजी के औरंगजेब की कैद से भागने में भी जेबुन्निसा ने मदद की थी। इन बातों की खबर औरंगजेब को भी थी और जेबुन्निसा पर पहरे सख्त कर दिए गए थे। फिर भी, दरबारी कवियों के ही आमंत्रण पर वह वेश बदलकर मुशायरों में जाती थी।
जब एक बार औरंगजेब बीमार हुआ तो हवा पानी बदलने लाहौर गया। उसके साथ हरम की बेगमों के साथ साथ जेबुन्निसा भी गयी थी। लाहौर के शायरमिजाज गवर्नर से भी उसे इश्क हो गया। दोनों छिपकर मिलते थे, जिसे एक दिन औरंगजेब ने देख लिया। इसके अलावा नासिर नाम के एक और शायर से जेबुन्निसा के संबंध थे। इन बातों से बेहद क्रोधित औरंगजेब ने जेबुन्निसा को सलीमाबाद के किले में कैद कर दिया और उसी किले में उसके इन दोनों प्रेमियों की उसके सामने ही हत्या करवा दी।
जेबुन्निसा के कुछ पत्र बागी शहजादा अकबर (जो जेबुन्निसा का चचेरा भाई था) के पास भी मिले थे। औरंगजेब ने शाहजादा अकबर की भी हत्या करवाने का प्रयास किया, लेकिन राजपूतों राजाओं की मदद से वह बचकर भाग गया था। अपने पिता के शत्रुओं से मुहब्बत करने वाली जेबुन्निसा को बीस साल की कैद मिली और कैद में ही उसकी मौत हुई। आखिरी वक्त तक वह कृष्ण भक्त बन गई थी और उसने प्रेम विषयक पाँच हजार दोहे लिखे थे।
अन्य शहजादियाँ भी इसी तरह अतृप्त इच्छाओं को ढोती हुई जीती मरती रही, जबकि ये क्रूर बादशाह खुद अपनी ऐय्याशियों के लिए औरतों की लंबी फेहरिस्त हरम में जमा करते रहे।
(प्रस्तुति -प्राची चौबे)