मायका
माँ के साथ ही,
ख़त्म हो जाता है !
सच कहूं तो ,
ससुराल भी
सास के साथ ही
ख़त्म हो जाता है !
रह जाती हैं बस यादें..
उनकी उस प्रेम के न्यौछावर की,
जो जीवन भर मेरे साथ रहकर
उन्होंने मुझे दी
उनकी उस ढाल की जो,
किसी ने मेरे सम्मान पर
आरोप, प्रत्यारोप करने कोशिश
भी की तो उनके रहते कोई भेद नहीं सका
वो हमेशा मेरा ढाल बनी रहीं
जीवन भर का विश्वास मुझे दिया
उनकी उस ‘ख़ुश रहो!’
वाले आशीष की,
जो अपने गठजोड़ संग
उनके चरण स्पर्श करते ही मिली थी!
उनकी उस चेतावनी की,
जो हर त्यौंहार से पहले
मिल जाया करती थी…
कल त्यौंहार है, आलता और मेहंदी लगा लेना!
उनकी उस दूरदृष्टि की जो,
मेरी अपूर्ण ख्वाहिशों के
मलाल को सांत्वना देते दिखतीं कि
तुममें सब्र बहुत हैं
देख लेना एक दिन सब अच्छा होगा!
उनकी उस घबराहट की,
जो किसी मेहमान के घर आने पर उन्हें
होती थी कि खातिर में कोई कमी न हो
खुद रोटियां सेकने लगना
और तसल्ली इस बात की रखती थी
कि “प्रीती” है तो सब देख लेगी
उनके उस उलाहने की,
जो बच्चों संग सख्ती के दौरान सुनाया जाता,
हमने भी तीन बच्चे पाले हैं
हमने तो कभी नहीं मारा!
उनके उस कुबूलनामे की,
जो अक्सर पीठ पीछे करतीं…
“न दिन देखती है न रात, हर वक्त
बस काम ही काम
मेरी सेवा बहुत करती है
कुछ भी कह दूं बात रखती है
पता नहीं लोग क्यों कहते हैं कि
सास , माँ जैसी नही होती
मुझे तो उनके रहते कभी अपनी
माँ की कमी खली नही
और उनके भी जानें के बाद
अब दोनों माँओ को भूली नहीं
एक जन्म देने वाली
एक जीवन पथ पर मार्ग दिखाने
वाली।
उनका लास्ट आशीर्वाद
जो सुनकर आँखे भर आयी थीं
तुम जहाँ रहोगी हर जगह रौनक रहेगी खुशियां राज करेंगी
भगवान सबको मेरे जैसी बहू देना
यूँ लगा अब मैं जिंदगी के हर इम्तिहान में पास हो गई।
अब तो मैं सारे त्योंहार पर
अक्सर मेहँदी लगाना भूल जाती हूँ,
अब कोई नहीं जो याद दिलाये!
सच ही है सास के बाद
ससुराल भी ख़त्म हो जाता है..!
(प्रस्तुति – प्रीति सक्सेना)