(POETRY)
हाँ, बड़ी उम्र की स्त्रियों को भी हो जाता है अक्सर प्रेम
जो होता है एकदम परिपक्व
जानते हुए भी की छली जायेंगी, ठगी जायेंगी
सहर्ष मोल लेती हैं
चुनौती
सच तो ये है वो जीना चाहती हैं
अपनी उस भूली बिसराई ज़िन्दगी को
जो दफ़्ना आई
अपने दायित्व की चट्टान के नीचे ..गहरे कही
सिर्फ़ देना ही नहीं वो पाना भी चाहती हैं स्नेह ..
उनकी उम्र से बड़ी होती है उन की परछाई की उम्र
जो मुड़ के झिड़कती है ” हद में रहो
चरित्र दागदार हो जायेगा
नहीं व्यक्त करती हैं वो अपने अंदर उमड़ती भावनायें
छेड़ना चाहती हैं
चिढ़ाना चाहतीं हैं
खिलखिलाना चाहती हैं
शरमाना लजाना चाहती हैं खुल के
नहीं लुभाता उन्हें दैहिक आकर्षक
नहीं बनना पसंद आता उन्हें बिछौना किसी का
होती है बस चाह किसी से मिल जाने की
खोजती हैं वो ऐसा कोई जो तवज्जो दे उन्हें
जो मुखर हो
बिखर जायें जिसके समक्ष
बिना किसी लाज शर्म लिहाज़ और पर्दे के
बाँटना चाहती हैं अपना बचपन अपनी जवानी
और चल रही कहानी ..को
रोक लेती है उन्हें रिश्तो की मर्यादा
हाथ पकड़ के खींच ले जाती वापस रिश्तों
लक्ष्मण रेखा
दायेरा बाँध देता है उन्हें खुद के इर्द गिर्द बने रिश्तो के जाल
में
खुद ही खुद में छुपा लेती हैं खुद को किस्सों कहानी
संस्मरणो के भीतर ही कहीं ..
और सुलगती रहती हैं जीवन भर संसार के अनुभवों
की परिक्रमा में..
(स्वर्णजोत माहोन)