Poetry by Shifali में पढ़िये एक अहसासों की पूरी दुनिया को जो जितनी मुलायम है उतनी ही कठोर भी..पर जैसी भी है, अपनी है..
दुनिया इस तस्वीर के मायने तलाश रही होगी
तब तुम मेरे हाथों को छूकर पढ रहे होगे मेरे उस दिन की इबारत
जिसके एक हिस्से में उदासियां थी
दूसरे हिस्से में कहकहे
तुम पढ रहे होगे, उस एक लम्हे को जब तलब लगी थी तुम्हारी
और किसी शख्स के चेहरे में तुम्हारा अक्स देख लिया था मैने
फिर कितने दिन खुद पर शर्मिंदा हुई थी
जिस दुनिया में रहती हूं, मुझे देखने जानने सुनने वाली दुनिया मैं क्यों नहीं आई ये सलाहियत
सब कहते हैं तुमने मुझे देखा नहीं
मैं कहती हूं, मुझे सिर्फ तुम्ही ने देखा है
खेल के मैदान से लौटा बच्चा जैसे मां को दिखाता है अपने घुटने की चोटें
जब मिलते हो, तो इन हथेलियों की छुअन से देख लेते हों, मेरे दिल पर लगे सारे ज़ख्म
मेरी रुसवाईयों को मेरी खुरदुरी हथेलियों की छुअन में सुन लेते हो
हम हर रोज़ आसमान तक जाती उस सीढी पर मिलेंगे
और मेरी हथेलियों में हर दिन खुलती रहेंगी तुम्हारी आँखे
बंद आंखो से जो तुम देख रहे हो, चाहती हूं
तुम्हारी ये बीनाई पूरी दुनिया को मयस्सर हो..
(शिफाली)