आओ कर लूं कैद
अब मैं भी तुम्हारी याद को
हे प्रिये अब दो विदा
दो विदा अब दो विदा
हे प्रिये अब दो विदा !
जाऊं अगर मै छोड़ कर तो
अश्रु तेरे ना गिरे
ना मरे तेरी पिपासा
चाह तेरी ना मरे
बस यही इक चाह है
अंतिम तुम मेरी मान लो
तुम नहीं होगी विकल
तुम इस धरा की शान हो
हे प्रिये अब दो विदा
दो विदा अब दो विदा
अंतर्मन में द्वंद्व मेरे चल रहा है
हे प्रिये
तन निछावर कर चुका हूं
मातृभूमि के लिए
इस जन्म में ना सही
अगले जन्म में आऊंगा
इस जन्म के ही वचन
शायद निभा मैं पाऊंगा
हे प्रिये अब दो विदा
दो विदा अब दो विदा !
युद्ध भूमि में बने
ताकत तुम्हारी याद भी
ये तेरा श्रृंगार और
चूड़ियों के साज भी
मातृभूमि के लिए
जाना है तुझको छोड़कर
आ गले लग जा तू मुझसे
क्यूं खड़ी मुख मोड़ कर
सिंदूर की कीमत करूंगा
देश की खातिर अदा
हे प्रिये अब दो विदा दो विदा
अब दो विदा !
(रिचा श्रीवास्तव, अयोध्या)