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Monday, August 4, 2025

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Poetry by Preeti Saxena: एक अनबूझ पहेली से लगते हो आप

(Poetry)

 

कहना चाहूंगी भाव की भाषा में
कि आप मुझे एक अनबुझ पहेली से लगते हो
कभी बेफिक्र बादशाह और कभी
फिक्रों की दुकान लगते हो।
जिस तरह उड़ते बादल को कोई नहीं पकड़ सका है
जिस तरह सागर के थाह को कोई नहीं जान सका है
ठीक उसी तरह आपके
असंयमित स्वभाव को नहीं जान सकता..

कभी जज्बातों से लबालब सागर से
तो कभी सूखे रेगिस्तान से लगते हो
मगर ये सच है कि आप मुझे एक अनबूझ पहेली से लगते हो….
कभी नरम कभी गरम कभी अनुरागी से लगते हो।
कभी आप मुझे अपना मीत बताते हो
कभी रुआब से भरे हुए बॉस से लगते हो।
सच में आप मुझे अनबुझ पहेली से लगते हो।

कभी जब मूड अच्छा हो तो लगता है
कॉल पर कितनी सारी बातें करूं,
लेकिन आपकी मौन की भाषा अब शायद मैं पढ़ लेती हूं।
गुस्से में जब आते हो चुप से हो जाते हो ।
मनुहार करने पर चुप्पी तोड़ते तो जरूर हो।
फिर उस गुस्से की सुनामी में शब्दों के बाण जो चलते हो
बस और क्या कहूं, जाने दो..

हां वाकई, आप एक अनबुझ पहेली से लगते हो..
आप खुद नहीं जानते आपमें एक देवता है
ज्ञान का सागर है अनुरागी आत्मा का वास है
मैत्री भाव का सार है किसी को भी खाक से उठा के
फलक पर बिठाने का हुनर रखते हो !

पर कभी जो कोई आपकी बात को आपके अनुसार
न कोई माने अपने थोड़ा मन की सुने तो बस
अपने क्रोध से मौन का अस्र चला कर
उसे जो तार तार करते हो
मैंने महसूस किया कि मुझे
आप अनबूझ पहेली से लगते हो
कभी गर्मी में सर्द हवा के झकोरे
कभी ज्वालामुखी के तपते लावे से लगते हो आप !

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