Poetry by Pradeepti Sharma: युद्ध और तबाही के मन्ज़र को पेश करती वास्तविकता के धरातल पर चली भावनाओं की ये कलम क्रेनबेरीज़ के गीत जॉम्बी की याद दिलाती है..
युद्ध और तबाही
ये ज़मीन का टुकड़ा,
लहू की कीमत पर मिला,
ये मुल्क और इसकी प्रभुता,
लोगों के प्राण छीन कर मिली,
कुछ ढेर हुए बारूद में,
कुछ घायल होकर,
ज़िंदगी से लड़ते रहे,
जली चिताएं शमशान में कई,
कई कब्रिस्तान भी कम पड़ गए,
कफ़न के व्यापारी भी,
अब अमीर होने लगे,
मय्यत की लकड़ी की बोलियाँ लगने लगी,
जब घर घर पलों में खाली होने लगे |
जो बचे वो यूँही मरते रहे,
कुछ इबादत में बैठे,
कुछ हाथ जोड़कर,
कुछ विलाप में स्तब्ध रहे,
कुछ उन्माद में भटकने लगे,
जो चले गए सो गए,
जो बच गए वो भी कहाँ कहीं रहे |
इस मुल्क और इसकी प्रभुता का,
बस नेता लुत्फ़ उठाते रहे |
(प्रदीप्ति शर्मा)