Poetry by Prachi Mishra: कवितात्मक और सार्थक भावों के साथ पढ़िए जीवन नारी का गहन कितना होता है..
अच्छी औरतें घर में रहती हैं !
ज़माने ने समझाया
अच्छी औरतें घर में रहती हैं
जो अपने मन की बात के अलावा
सब कुछ कहती हैं
जो लड़ती हैं पति से गहने ज़ेवर के लिये
पर उन्हें लड़ना नहीं आता
अपने हक़ के लिये
जो मसालों का अनुपात बेहतर जानती हैं
पर नहीं जानतीं दुनियादारी
जिनको नहीं पता नेमप्लेट पर
नाम होने का महत्त्व
जो खुश हैं खुद को आईने में निहार कर
डर है उन्हें बाहर धूल फांकने से
क्योंकि वो जानती हैं
अच्छी औरतें घर में रहती हैं
जो नकार देती हैं खुले विचारों और
बाहर काम करने वाली औरतों की संगत
जिनकी डिग्रियां काम आईं
केवल एक बेहतर वर की तलाश में
जिन्होंने विद्रोह किया
सास और ननद की चुगलियों में
जो ढो रही हैं पीढ़ी दर पीढ़ी
कुंठा और अन्धविश्वास का बोझ
जो नहीं जानती अपने
पैरों पर खड़े होने का मतलब
क्योंकि वो जानती हैं
अच्छी औरतें घर में रहती हैं
जो देश और दुनिया को उतना ही जान पाईं
जितना आते जाते उन्होंने न्यूज़ चैनल में सुना
जो नहीं सुनाती हैं बच्चों को
गार्गी, चिन्नम्मा और लक्ष्मीबाई की कहानियाँ
व्रत, उपवास और मन्नत के धागों में
जिन्होंने मांग ली है
पूरे परिवार की खुशियां
जो भूल गई हैं स्वाभिमान का अर्थ
जिनको समाज ने लज्जा का दामन
ओढ़ाया और बताया
अच्छी औरतें घर में रहती हैं
जिनको मिला है भीख में सम्मान बेटा जनकर
वो नहीं जानतीं बेटी होने का सौभाग्य
जो चुटकीभर सिन्दूर में बदल देती हैं
अपने शौक,अपना नाम और जीने की अदा
उन्हें पाप लगता है खुद के लिये जीना
जो मरती हैं घर बनाने के लिये
लेकिन उनका कोई घर नहीं होता
जो बनी हैं केवल
डोली और अर्थी तक के सफ़र के लिये
उन्हें कोई बस इतना बता दे
अच्छी औरत कहीं भी रहे
अच्छी ही रहती है।
(प्राची मिश्रा)