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Saturday, June 14, 2025

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Poetry by Monika Sharma: सदका उनका भी कुछ यूँ ही उतारा जाए..

 

सदका उनका भी कुछ यूँ ही उतारा जाए
दुश्मनों को भी मुहब्बत से ही मारा जाए
तख़्त और ताज उनके हाथ में दे दें पहले
छीन लेने का फ़िर इक़ खौफ़ पसारा जाए
तमाम खिड़की दीवारों से धूल झाड़ी जाए
और कचरे को फ़िर आँगन से बुहारा जाए
चलाई जाएँ कुछ ऐसी हवाएँ उल्फत में
नदी जो जाए तो फ़िर साथ किनारा जाए
कि इक़ बार जो गया न दोबारा लौटे
कि लौटा है जो वो फ़िर न दोबारा जाए
लगा के रोक यूँ इश्क़ पे हासिल क्या है
थामकर हाथ इक़ दूजे को सँवारा जाए
हाथ पर हाथ रखके बैठना नहीं अच्छा
अब ऐसे तो भला वक्त से न हारा जाए
नस्लें बर्बाद न हों रोशनी में जुगनुओं की
किसी के घर का न ऐसे तो उजारा जाए
हटाओ ज़ुल्म की चादर तमाम धर्मों से
न कुछ तुम्हारा और कुछ न हमारा जाए
(मोनिका शर्मा)

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