(Poetry)
शिव – शक्ति
निमग्न था वह ध्यान में,
शक्ति के अनुसन्धान में
सतत प्रतीक्षारत आदि योगी,
जगत कल्याण के लिए।
युगों युगों का विष पिये,
रुद्राक्ष शोभित नीलकंठ में,
त्रिपुंड दहक रहा था,
उसके श्यामल भाल पर।
खोज थी उस प्रज्ञा की,
ब्रह्माण्ड के चिर सत्ता की
जो पूर्ण करे पुरुषार्थ को,
प्रेम के निरंतर प्यास को।
सहसा दीप्त हुई हर दिशा,
प्रकट हुई प्रतीक्षित ईशा,
आह्लादित योगी आगे बढ़ा
अर्धनारीश्वर रूप प्रकट हुआ।
(मेधा झा)