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Monday, December 15, 2025

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Poetry by Medha Jha: मेरा प्रथम प्रेम

(Poetry)

मेरा प्रथम प्रेम

उस वय में
जब प्यार शब्द
नहीं आया था शब्दकोश में मेरे,
रक्त सम्बन्धी के बाद
प्रथम प्रेम तुम ही तो हो
मेरी हिंदी !
तुम्हारे शब्दों ने
गढ़ा जादुई दुनिया
मेरे इर्द- गिर्द
सैर करवाते रहे तुम
देश विदेश की मुझे,
कितने किस्से सुने
मैंने तुमसे
संस्कृति- सभ्यता के बारे में
और फिरती रही निरंतर
वोल्गा से गंगा तक।
तुमने दिखाया
इस धरा के सौंदर्य को
और मिलवाया कई बार
मुझसे मुझको।
सारे प्रेमी सारे दोस्त,
जब साथ रहे थे छोड़,
एक सच्चे आशिक़ की तरह
उस समय भी थामा
तुमने मेरा हाथ
जब छूट रहा था
अपनों का साथ।
आज फिर मैं हूँ,
तुम हो
और है तिलिस्मी दुनिया हमारी।
कहाँ है मुझे आज
जरुरत किसी की।
मैंने तुमसे,
हाँ तुमसे पहला प्रेम किया,
और यह प्रेम अमर रहेगा
वादा है मेरा तुमसे।
(मेधा झा)

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