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Friday, June 13, 2025

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Poetry by Medha Jha: काम पर लौटना

Poetry मेधा झा की कलम से इस कविता में उकेरती है एक संदेश हर उस स्त्री के लिए जो लंबे ब्रेक के बाद काम पर लौटती है..

काम पर लौटना

मुट्ठी में भर लिया है
जुगनूओं को मैने फिर से,
लगाया धूप ख्वाबों को,
जो कैद में थे कब से।
निकलती हूँ हर सुबह मैं
पहने आत्मविश्वास अपने,
दिखता है सधे कदमों में
पूरे होंगे मेरे सब सपने।
भीड़ भरे बाजार से गुजरती हूँ,
रौशनी भरे शहर को देखती हूँ।
तृप्ति से खुद को निहारती हूँ,
हां! अभी खुद में ‘मैं’ बाकी हूँ।
(मेधा झा)

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