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Monday, December 15, 2025

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Poetry by Medha Jha: दशहरा

(Poetry)🌸
महकने लगा है मन-प्राण मेरा,
अहा! हरसू है हरश्रृंगार बिखरा।
ओस में भीगे वर्ण केसर और श्वेत,
देवों का है ज्यों शुभ कोई संकेत।
थपथपा कर जगाती है
निंदिया से प्यारी नानी;
प्रतीक्षा में हैं पारिजात,
छोड़ो, तुम! आनाकानी।
रुक-रुक कर चले कदम,
अर्ध निमीलित सी आँखें,
खुल जाती हैं पूरी झट से,
ब्रह्म मुहूर्त में सुगंध पा के।
अहा! यह स्वर्गिक दृश्य,
अभी भी है आँखों में मेरे ;
चुन रही हूं फूल नानी संग
जा कर बचपन में अपने।
(मेधा झा)

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