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Monday, December 15, 2025

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Poetry by Manmeet Soni: कुछ स्त्रियां अब भी थोड़ी पुरानी स्त्रियां हैं

कुछ स्त्रियां अब भी थोड़ी पुरानी स्त्रियां हैं
उनकी साड़ियां बहुत सुंदर होती हैं
लेकिन उनके ब्लाउज़ डीप कट वाले नहीं होते
वे नहीं दिखाती अपनी टांगें
वे शराब या सिगरेट नहीं पीतीं
फेसबुक पर अकाउंट तो बनाती हैं
लेकिन स्क्रीनशॉट स्क्रीनशॉट नहीं खेलतीं
वे ऐसी किसी भी बहस में हिस्सा नहीं लेतीं
कि स्त्रियों को पुरुष संतुष्ट कर पाते हैं या नहीं
उनके लिए शरीर शरीर जितना ही है
उनकी आत्मा आत्मा से भी बहुत सूक्ष्म है
वे अभी नहीं सीख सकी हैं कॉल रिकॉर्डिंग
उन्हें महिला थाने के नाम से भी डर लगता है
वे अपने बच्चों को तारक मेहता का उल्टा चश्मा दिखा रही हैं
उनके फोन उनके बच्चे और उनके पति भी चलाते हैं
वे सोशल मीडिया पर एक्टिव हैं
लेकिन उनके दोस्तों में सिर्फ़ कुछ परिजन हैं और बहुत जानकर लोग
उनके नंबर अभी सार्वजनिक नहीं हुए हैं
उनके फोन की गैलरी अपने बच्चों और पति की फोटोज से भरी पड़ी है
वे सुबह जल्दी उठ रही हैं
वे खाना बना रही हैं
वे टिफिन बांध रही हैं
वे बच्चों को स्कूल भेज रही हैं और पतियों को ऑफिस
वे इंतज़ार करते हुए झपकी ले रही हैं
वे ख़ुश हो रही हैं शाम को सब लोग घर पर लौट आए
वे किटी पार्टियों से दूर हैं
वे अब भी कथाएं सुन रही हैं
वे अब भी पीपल सींच रही हैं
वे अब भी गाय कुत्तों को रोटी दे रही हैं
वे अब भी रात को सबके साथ बैठकर कुछ देर टीवी देख रही हैं
लेकिन इन स्त्रियों को कुछ नहीं समझती
कुछ बहुत तार्किक स्त्रियां
वे ऐसी स्त्रियों को खा जाना चाहती हैं
पिछले कई दशकों से भड़का रही हैं वे स्त्रियों को
लेकिन भारत के परिवार हैं कि टूट ही नहीं रहे
यह स्त्रियों के भीतर की लड़ाई है
हम पुरुषों को इसे दूर से देखना चाहिए
लेकिन मैं क्यों नहीं बोलूंगा बीच में
अगर मुझे मेरा घर टूटता हुआ दिखाई दे
जिन स्त्रियों का परिवार नहीं बसा
वे उन स्त्रियों का परिवार उजाड़ देना चाहती हैं
जिनका परिवार बसा हुआ है
यह अजीब कुंठा है मगर यही सच है
मैं नहीं जानता इस लड़ाई का अंजाम क्या होगा
लेकिन मैं मेरी मां मेरी बहनें और मेरी पत्नी
अब भी एक “चेन” बनाकर खड़े हैं
इस जलजले के खिलाफ़
हम सारे एक कमरे में मिलकर खाना खा रहे हैं
और हमें इस बात से कोई मतलब नहीं
कि फेसबुक या व्हाट्सएप की दुनिया में क्या हो रहा है
हमारे घर की छतों पर
साड़ियों के नीचे सूख रहे
मेरे घर की स्त्रियों के अंतर्वस्त्रों को
जो स्त्रियां
घर के बरामदे में सबके सामने सुखाने की लड़ाई लड़ रही हैं –
वे इस लड़ाई से क्या जीत जाएंगी?
उनके पास न कल कोई जवाब था न अब है!
(मनमीत सोनी)

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