(Poetry)
अक्सर सोचती थी तुम अलग हो!
कुछ भी हल्का असर नहीं करता ।
फ़र्क करना आता और निभाना भी।
सहूलियत से अहम नहीं मापते
स्थिति परिस्थिति दोनों में फ़ानी
हँसने का अर्थ जीना और रोना रोना ही रहा
पीठ पलटे पर सुर,रंग,लोग और नीयत नहीं
एक बार का खरा दूजे पल का खारा नहीं
खामोशी और शोर दोनों में राज़ी
शैतान की शैतानी में से कल्पना चुनते
लिखे ,कहे, सुने और समझे हुए पर अपना हस्ताक्षर करते
पर मैं दिग्भ्रमित हो गई।
धीरे धीरे
मैं गलत साबित हुई ।
बरसों से बहुत पास
बहुत पास
और भी पास से देखते हुए
मैंने सीखा तुमको असल में देखना।
ज्यादातर मापदंड काट दिए।
तुम साधारण निकले
बेहद मामूली
सादा
इस असाधारण प्रेम के सांचे खांचे में।
मैं मुस्कुराई।
फिर शांत हो गई।
(कल्पना पांडेय)