POETRY: पढ़िए डॉक्टर मुक्ता सिंह की कलम से प्रेम के रंग पर यह काव्यात्मक प्रस्तुति..
है रंग प्रेम का कैसा
तुम श्वेत रंग
कई रंगों को आत्मसात् किए
जब भी दिखे
नज़र आए
अलहदा रंग में,
असहज हो जाती हूं
कि कितने रंग छिपे हैं तुम में,
रूठे जब भी
दिखे तुम लाल रंग में
जताया प्रेम जब भी
गालों को कर गए गुलाबी
जब कभी न बात की तुमने
आंखों के नीचे दे गए
स्याह रात की निशानी
मुश्किल में यूं साथ खड़े रहे जैसे
अडिग नीला आकाश हो तुम
जब नैनों से भाव बहे
तुम समन्दर से शान्त
बता गए,
तुम बेरंग एकाकी
जैसे पानी
जब भी रहे साथ तुम
मानो दशों दिशाएं
मुस्कुरा रही हैं
जीवन में लाए
हरियाली तुम
इंद्रधनुषी रंगों की बौछार कर
दे जाते हो मधुर स्मृति
तुम श्वेत रंग
कई रंगों को आत्मसात् किए