पुरुष द्वारा पुरुष के लिए
बहुत कुछ लिखा गया है
पर, एक स्त्री के नज़रिये से देखें तो….
वास्तविकता थोड़ी ज्यादा नज़दीक होती है
पुरुष यानि कि पत्थर में अंकुरित कोपल
पुरुष मतलब लोहे के सीने के पीछे
धक धक करता कोमल ह्रदय
पुरुष यानि कि
किसी कोयल की कूक
ढ़ूँढता एक मूक वृक्ष ….
पुरुष कहता है कि
आज मूड नहीं है,
दिमाग़ ठिकाने नहीं है….”
पर, शायद ही कहेगा कि आज मन उदास है
स्त्री
पुरुष के कंधे पर सर रखकर रो लेती है
जब कि, पुरुष
स्त्री की गोद में सर रखकर रो लेता है
जिस तरह दुनियाभर की स्त्रियों को
अपने पुरुष के शर्ट पे बटन लगाने में
जो रोमांच होता है
वही रोमांच उसी वक्त स्त्री को
गले लगाने में पुरुष को होता है
जीतने के लिए पैदा हुआ पुरुष
प्यार के पास हार जाता है
और जब
वो प्यार छोड़ जाता है ना
तब वह जड़ समेत उखड़ जाता है
स्त्री की मजबूरी सह जाता है
जैसे तैसे भी…. मगर,
बेवफाई सह नहीं पाता
उसका
या खुद का
दुश्मन बन जाता है
धंधे में लाखों का घाटा सह जाता है
भागीदारी में दगा नहीं सह पाता
समर्पण स्त्री का स्वभाव है
और पुरुष की हार्दिक कामना
स्त्री के आँसू अंधेरे में भी
दिखते है
पुरुष के आँसू
उसके तकिये को भी नहीं दिखते
कहते है
स्त्री को चाहते रहो,
समझने की ज़रूरत नही
मैं कहति हूँ :
पुरुषको बस.. समझो
अपने आप चाहने लगेगा तुम्हें !
(अरशिता)