Poetry by Ankita Chaturvedi: सहज मानवी प्रेम का सहज कवितात्मक चित्रांकन देखिये..
मन जंगल के वीराने में
जब जब प्रेम तुम्हारा ठहरा
मचल उठी पुरवैया जैसी
टिक पाया न कोई पहरा !
प्रेम तुम्हारा मेरे मन की
सोई सोई गौरैय्या को
जगा जगा कानों में बोला
अमृत सा तन मन में घोला !
प्रेम तुम्हारा
मार गया है
मेरी पीड़ा के विषधर को
मीठी सी एक झील कर गया है !
खारे खारे से सागर को
प्रेम तुम्हारा मेरे मन की
खोई खोई सी गैया को
हरा हरा चारा दिखलाकर
ला खूँटे से बांध गया है !
प्रेम तुम्हारा हिया हमारा
हाय यूं बेचैन कर गया
बिन काजल के काले काले
तीखे तीखे नैन कर गया !
(अंकिता चतुर्वेदी)



