Poetry by Ankita Chaturvedi: प्रेम को समझना ही दुष्कर है तो करना कितना दुष्कर होगा, आप अनुमान नहीं लगा सकते..परंतु प्रेम असंभव नहीं है !
प्रेम
चश्मा चढ़ी उसकी काले घेरे वाली आंखें
अब भी तुम्हें झील सी लगती रहें,….
प्रेम
पपड़ी जमे होंठों की थकी हुई मुस्कुराहट भी
तुम्हारी थकान उतार सके…….
प्रेम
विबाईयों से भरे गठिया ग्रस्त पैरों में भी
लक्ष्मी जी विराजती दीखें……
प्रेम
उसके माथे की झुर्रियों में फंसी बिंदिया का चांद
आज भी तुम्हारे दोनों जहां रौशन करे……
प्रेम
उसके खुरदुरे पड़े हाथ थामते ही तुम्हें यूं लगे
के सारा ज़माना मुठ्ठी में है……..
प्रेम
उसकी बेडौल, अधेड़ काया के परे
तुम देख सको उसका त्याग, और नतमस्तक हो सको…
(अंकिता चतुर्वेदी)



