Poetry by Ankita Chaturvedi: प्रेम जीवन का सर्वोत्तम उपहार है किन्तु इसको समझना और सम्हालना सबको नहीं आता..संवेदना की कलम से समझिये प्रेम को..
घृणा के विष की
असंख्य परतें,
प्रेम की
मलाईदार तह के नीचे,
धंसती गयी मैं
आंखें मींचे ।
धीमे धीमे
सारा हलाहल घुल गया,
और जब
प्रीत का व्यंजन
विष में मिल गया।
तब मैं सोचती बैठी
के क्या पाया?
फिर सोचा
के धीरज धरूं,
अंत मे सोच के यही
के प्रेम
केवल पाने का नाम तो नहीं
हंस पड़ी
रोते रोते
तब जाना, के
आंसू अब भी हैं
भीतर तक भिगोते……..
के उम्र बीती नहीं अभी तक
हँसने – रोने की
पाने – खोने की……
(अंकिता चतुर्वेदी)