(POETRY)
अब भी छोर पकड़ लेता है
अवरोध अटकन है कहीं
भटक जाती हूँ कभी-कभी
जान कर भी सही !
एक प्यारी-सी बात
तुमने बड़े चाव से कही
प्रसन्नता प्रेम और विश्वास
से श्रेष्ठतर कुछ भी नहीं!
मंथन के जालों पर तुम्हारी
धारणाओं के गंगा-जल
का छिड़काव किया
जिसने मुझे विस्तृत दृष्टिकोण
और उचित मार्ग-दर्शन दिया!
आदतें धुंधली लिखावट-सी
कभी-कभी द्वार खटखटाती हैं
दिग्भ्रमित करती है मगर अंत में
विजय तुम्हारे संस्कारों की हो जाती है!
प्रेम की प्रबलता हर कसौटी पर भारी है
स्वयं को संशोधित करने की
यात्रा आज भी जारी है!
तुम्हारे साथ और सानिध्य से मैं पूरी हूँ
तुम बिन अस्तित्वहीन हूँ और अधूरी हूँ!
परिवर्तन का आधार तुम्हारा निश्छल प्रेम है
अंतर्घट मनोभाव भेंट तुमको सप्रेम है!
(अंजू डोकानिया)