Poetry by Anju Dokania: माँ तेरी बहुत याद आती है “..उसका ख़त पढ़ते हुए आँखें भीग जाती हैं..
बेटों की भी होती है विदाई
घर छोड़ते हैं जब वो आती है रुलाई
उच्च शिक्षा प्राप्त करने जब वो जाते हैं
भूख लगने पर कभी जंक फ़ूड कभी ब्रेड चबाते हैं
जब पढ़ते-पढ़ते हो जाती है देह में थकान
तो कई बार यूँ ही बेसुध सो जाते हैं
वहाँ नहीं होती माँ जगा कर खिलाने वाली
जब नींद ना आए तो थपकी दे कर सुलाने वाली
“यूनिवर्सिटी की सड़कें बहुत लंबी हैं माँ
बहुत चलना पड़ता है
कभी उठने में देर हो जाये तो
भूखे पेट ही कॉलेज दौड़ना पड़ता है
तुम होती तो ज़बरदस्ती हाथ में वेजिटेबल रोल
थमा देती
कहती बेटा खाते-२ जाना
घर से कभी भूखें पेट मत जाना”
परीक्षाओं के बाद जब घर लौटते हैं बेटे
गले लिपट कर कहती है माँ
“क्यों रे वहाँ खाता-पीता नहीं है क्या
सुख कर कांटा हो गया
अपनी सारी ममता की बारिश
उस एक महीने में अनवरत लुटाती है
माँ तेरी बहुत याद आती है “
उसका ख़त पढ़ते हुए आँखें भीग जाती हैं
“जब जा रहा था विदेश
तब भी मेरा अंतर्मन क्रंदन करता था
कि अब फिर तू चला जाएगा
हर घड़ी हर क्षण तू बहुत याद आएगा”
पर तेरे सामने सदैव मजबूत मुस्कुराती रही
प्रार्थनाओं में तेरी सफलता की कामना करती रही
हाँ तुझसे कॉल पर बात तो अक्सर हो जाती है
मगर तुझसे मिलने की अभिलाषा मन ही मन
और पक्की हो जाती है
कि तू आएगा और फिर मुझे छोड़ कर कभी नहीं जाएगा
तेरे बाबूजी को कहूँगी अब और तुझे ना जाने दे
यहीं रहने और कमाने दे
पर विडंबना कि इस डिग्री के भाव हमारे देश में कम हैं
और विदेश की तनख़्वाह में बड़ा दम है!!
बेटियाँ तो फिर भी मायके आती-जाती रहती हैं
पर बेटे बाहर ही रह जाते हैं जब कमाने जाते हैं
इसीलिए बेटों की भी विदाई होती है
कभी-कभी हमेशा के लिए ..
(अंजू डोकानिया)