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Monday, August 4, 2025

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Poetry by Amandeep Gujral: पापा के हाथों में एक अदृश्य छड़ी है, जादू भरी

(POETRY)

पापा के हाथों में एक अदृश्य छड़ी है, जादू भरी

सिर पर हाथ फिराते ही
छत बन तन जाता है पूरा आसमान
नीला, विशाल, बेहिचक।
हर वृक्ष
एक छांह में
तब्दील हो जाता है
हवा झुलसाने से पहले
सोचती है
दसियों बार
हर बला
दरवाजे के कोसों दूर से
लौट जाती है
पापा के हाथों में
एक अदृश्य छड़ी है, जादू भरी
जिसे बिना हिलाए ही
दूर हो जाती हैं सब बाधाएँ
उनकी आँखों में
रहती है सीख उम्र भर की
देखने भर से
पराजित हो जाता है भय
उनकी मौजूदगी से
साहसी हो जातें हैं कदम खुद ब खुद
डर नहीं लगता
किसी कदम के लड़खड़ाने से
अँधेरे रास्तों पर
पाँव रखते ही
जुगनू कदमताल करते
चलने लगते हैं साथ मेरे
घड़ी का काँटा उलझता नहीं मुझसे
पापा के होने से
सुलझता रहता है सब कुछ अपने आप।
(अमनदीप गुजराल)

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