(Poetry)
कभी चाबी बाँधी
कभी हां जी’ बाँधी
स्त्रियों ने अनेकों बार
आँचल में आँधी बाँधी .
किसी ने आँसू पोंछे
किसी ने दाग पोंछे
आँचल से न जाने कितनों ने
अपने सुहाग पोंछे .
कभी दुधमुंहों की
ओट बना
कभी अल्हड़ प्रेम की
खोट बना
गरीब के आँचल में बँधा अनाज
लोकतंत्र की वोट बना.
कोई सोने कढ़ा
किसी पर पैबंद मढ़ा
किसी ने लिखी कविता
किसी ने आँचल पर
गीत पढ़ा.
किसी ने बेच डाला
गुरबत की बेगैरती में
किसी ने मुट्ठी में चुन्नट भर
खाना खिलाते पंखा झला.
खाट से बँधा जब
माँ का आँचल
तब रोते बच्चे का पलना बना
(सुजाता)