One minute read में यहां सुजाता मिश्रा की कलम से पढ़िये उनका भावनापूर्ण वास्तविकतावादी शाब्दिक संप्रेषण – कुछ सोचते हुए..
व्यक्ति जैसे –जैसे एकांत की ओर बढ़ता है वैसे –वैसे उसमें ऐसे तमाम विषयों और रिश्तों के प्रति विरक्ति उभरने लगती है जिनमें अभी तक वो बेवजह अपनी ऊर्जा खपा रहा होता है.. किंतु व्यक्ति जब एकांत में जाता है तब शुरुआत में एक लंबे समय तक उसे जीवन के कटु अनुभव, असफल प्रयास, संघर्ष सब दिखाई देते हैं….
इसीलिए एकांत भी पीड़ादाई होता है,क्योंकि हमारे जीवन के अनुभवों की स्मृतियां उसमें हमारे साथ होती हैं… इसीलिए “रिल्के” ने अपने पत्रों में लिखा था “अपने एकांत से प्यार करो और उससे उपजी पीड़ाओं के बीच भी मग्न रहना सीखों।”….
कितना सुंदर सच है,वास्तव में अपनी पीड़ाओं, जीवन के कटु अनुभवों को स्वीकार कर ही व्यक्ति उस भावनात्मक बोझ से मुक्त हो सकता है जो वह सबमें शामिल होने के चक्कर में ढोता रहता है …..
“एकांत” मानव जीवन का सत्य है…क्योंकि एकांत ही हमें हमसे मिलाता है,एकांत में ही हम आत्मसाक्षात्कार करते हैं…इसीलिए पीड़ादाई होते हुए भी एकांत का अंतिम लक्ष्य मानसिक शांति की प्राप्ति ही होता है..