नव्या: पार्टनर, मैं बहुत नाराज़ हूँ।
तुझसे बड़ी वाली कुट्टी.. खैर छोड़ो
नव्या: अब कुछ कहने का कोई मतलब नहीं।
जब बात ही बेकार हो…
युवान: अगर बेकार हो तो
“कार ले लो”
नव्या: क्या
युवान: “मैं बेकार हूँ”, मैंने माना।
युवान: “लेकिन कार नहीं ली।
युवान: “अगर कुछ लूंगा, तो रिक्शा लूंगा सीधे
युवान: ताकि रोज़ नई सवारी मिले।
युवान: पुरानी गई तो क्या हुआ, नई बहुत मिलती हैं।
नव्या: घर का रिक्शा पसंद नहीं?
युवान: घर में रिक्शा कौन चलाता है, जी?
युवान: किस दुनिया में हो पार्टरनी… और हां,
युवान: मैं घर-बाहर नहीं खेलता, मैं ज़िंदगी खेलता हूं !
नव्या: आप मुझसे अच्छी बातें किया करो
युवान: जी, गलती हो गई। क्षमा कर दीजिए
युवान: मैंने कई बार… आपसे अच्छी बातें नहीं की
युवान: सबकी माफ़ी
नव्या: दो पल हंस-बोल लेना ठीक होता है
युवान: दो चार पलों का हिसाब मैं नहीं रखता
क्योंकि अब मैं घड़ियां नहीं रखता,
वो पुराना समय बताने वाली पुरानी घड़ियाँ
युवान: वैसे भी वास्तु के हिसाब से शुभ नहीं होती।
अब मोबाइल का ज़माना है, उसी से सारे काम हो जाते हैं.. और हंसने के साथ बोलना भी हो जाता है..
नव्या: मोबाइल लेकर, मोबाइल ही बने रहते हो
युवान: ऐसे ही हँसने के साथ बोलना भी हो जाता है…
हाँ, ज़िंदगी अब मोबाइल हो गई है।
युवान: जो रुक गया — वो ‘घड़ी’ है..बस दो घड़ी की…
युवान: और हां, पुरानी घड़ियां मैंने फेंकी नहीं हैं
युवान: संभाल कर रखी हैं — सात तालों में बंद,
और चाबी फेंक दी समंदर में..
नव्या: क्यों?
युवान: ताकि वो घड़ियां कभी ये ना कह सकें
कि जब लाए थे तो वादा किया था — फेंकोगे नहीं !
नव्या: ओहो
चाबी नहीं कहेगी
वो तो घड़ी के साथ ही आती है
युवान: चाबी कुछ नहीं कह सकती,
क्योंकि वादा उसी ने तोड़ा है —
चलते रहने का, साथ निभाने का..
युवान: घड़ी पर ताला लगाकर उसे बंद कर देना —
ये चाबी का कसूर है..
बेचारी घड़ी… बेवजह मारी गई..
युवान: यहां ‘घड़ी’ मतलब पुराना रिश्ता,
और ‘चाबी’ — जिससे वो जुड़ा था..
नव्या: चलो, अभी ज़्यादा घड़ी की तरफ़दारी मत करो
युवान: नहीं की मैंने।
पर कभी-कभी टिक-टिक सुनाई देती है —
घड़ी की…
दिल के अंदर।
तो हैरानी होती है..
नव्या: “ओहो…कल बात करूंगी आपकी ‘घड़ी’ के बारे में..
युवान: जी
नव्या: ठीक है, आयेंं
युवान: खुद चले जायें..और शर्मा जी से कहें आयें !
नव्या: ओहह
(प्रस्तुति – सुमना पारिजात)