Memories: Deepali Agrawal writes ये कॉलेज के दिनों की बात है – पढ़िए एक भावनात्मक दौर का भावनात्मक चित्रण जो प्रेम करने वाले हृदय को स्पर्श करता है..
ये कॉलेज के दिनों की बात है, प्रेम के दिन थे, ग़ज़ल सुनने और साहित्य पढ़ने के भी। भीषण गर्मी में छत्त पर घूमता पंखा न जाने कौन प्रदेस की हवा फेंक रहा था कि दिन भर ख़ुमारी चढ़ी रहती। अमृता प्रीतम और साहिर की प्रेम कहानी ज़हन पर थी। एक पंजाबी कवयित्री और एक उर्दू का शायर। लगा कि अमृता जैसा ही बनना है, वैसे ही डूबकर प्रेम और वैसा ही साहित्य में नाम। साहिर तो अमृता की नज़र से देख रही थी तो वे और भी पसंद आने लगे।
हनी सिंह के उस दौर में मेरे कमरे में पचास-साठ के दशक के गाने चला करते थे। खिड़की के किनारे एक मेज़ थी, जिस पर गहरे पीले रंग का पर्दा था। हल्की धूप छनकर मुंह पर पड़ती थी, डेयरी से लाई हुई छाछ मेज पर और अंधेरा कमरा। वो मुझे बताता कि उसे भी साहिर बहुत पसंद हैं और फिर अमृता… लिखकर खाली मैसेज छोड़ देता। वे छुट्टियों के दिन थे, हफ़्ते भर शनिवार और रविवार की इसी दोपहर की इंतज़ार रहता।
कितने वीकेंड बीते इसी तरह और अमृता का भी मेरे जीवन में प्रभाव बढ़ता चला गया। एक बहुत लंबे समय बाद ना ही कॉलेज था, ना एक खिड़की और ना ही वीकेंड तब मेरे साथ सिर्फ़ अमृता बची थीं और उनकी रसीदी टिकट। मैंने धीमे-धीमे जब उन्हें और पढ़ना शुरु किया तो उनके कई और पक्ष सामने खुलते गए। वे सब उनकी किताबों के सहारे जैसे शक्ति कणों की लीला। ये अमृता के अध्यात्मित पक्ष पर थी हालांकि उनके तमाम कामों में मुझे सबसे ज़्यादा पिंजर उपन्यास पसंद है।
फिर भी जो कहानी जिससे मेरा मोह और मेरी कल्पना जुड़ी थी वो था उनका साहिर के साथ प्रेम।
अमृता के बाद साहिर को पढ़ना शुरु किया। उन पर लिखी बायोग्राफ़ी और तमाम लेख भी। साहिर ने कहीं भी अमृता का नाम ना लिखा था। कहीं एक इंटरव्यू भी नहीं, किसी दोस्त से भी नहीं कहा कि वे अमृता से प्रेम करते हैं।
इसके इतर अमृता साहिर से इतनी फैंटेसाइज़्ड थीं। उन्होंने जब कई जगह कहा कि साहिर की छाती पर बाम मला है तो खुशवंत सिंह ने ताना मारते हुए कहा – इतना बाम मला है कि अब तो साहिर की छाती पर फफोले पड़ गए होंगे। लेकिन साहिर की सारी चुप्पी के बाद भी मेरा मन कहता रहा कि – दबा-दबा सा सही, दिल में प्यार होगा ज़रूर। फिर उनके साथ रहने वाले तमाम लोगों की बातें सुनीं, जावेद साहब ने तो कहा कि ये सब बड़े लोगों के काम हैं – पर्सनैलिटी को सजाने के लिए।
जावेद की साहब की बात से एक पहलू तो महसूस हुआ ही था कि आज अचानक एक लेख मिला। गुलज़ार साहब ने लिखा है अमृता प्रीतम के लिए। उसमें उनके मेटाफ़ोर की तारीफ़ है, उनके जीवन के प्रति बोल्डनेस की भी। अमृता की बात हो तो साहिर को कैसे छोड़ा जा सकता है। सो गुलज़ार साहब बताते हैं कि एक ज़माने, साहिर उनकी ऊपरी मंज़िल में रहते थे और उन्होंने कभी भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में भी अमृता का लेकर कभी कुछ नहीं कहा। गुलज़ार साहब ने ये भी लिखा कि अमृता की फैंटेसी बहुत ज़्यादा थी।
ख़ैर, ये तो कभी कोई नहीं जान सकता कि दो लोगों के बीच क्या और कैसा रिश्ता था। दो लोगों के बीच का संबंध सिर्फ़ वे दो लोग ही जान सकते हैं और बाक़ी सब अफ़्साना है। बहरहाल, मार्च का महीना है। वही कॉलेज के दिनों जैसा दिन में तेज़ धूप और शाम की सर्दी वाला, छाछ की अलामत वाला। मैं सोच रही हूं कि वो क्या था जो अमृता… के आगे लिखा जाना था।
(दीपाली अग्रवाल)
(इस विश्व के प्रथम मात्र-महिला मंच OnlyyWomen पर धरा की प्रत्येक महिला लेखिका व पाठिका का ससम्मान स्वागत है !!)